प्रधानमंत्री मोदी के समारोह में भारत के मुख्य न्यायाधीश और केंद्रीय कानून मंत्री के बीच बढ़ी खींचतान

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भारत के मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस दीपक मिश्रा और केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद न्यायपालिका की भूमिका के विचार पर सार्वजनिक रूप से एक दूसरे के साथ असहमत नजर आए। राष्ट्रीय कानून दिवस पर आयोजित समारोह में न्यायाधीशों और वकीलों की सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका एक ही परिवार का हिस्सा हैं और एक-दूसरे को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए। वहीं प्रधान न्यायाधीश और कानून मंत्री के बीच न्यायिक सक्रियता के मुद्दे पर बहस हो गई।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि तीनों अंग — विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका को इस बात पर माथापच्ची करनी चाहिए कि बदले परिदृश्य में कैसे आगे बढ़ें। उन्होंने कहा, वे एक ही परिवार के सदस्य हैं… हमें किसी को सही या गलत साबित नहीं करना है। हम अपनी ताकत के बारे में जानते हैं, हम अपनी कमियों को भी जानते हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा सभा को संबोधित करने से पहले कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के बंटवारे की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि शक्तियों के बंटवारे का सिद्धांत न्यायपालिका पर भी उतना ही लागू होता है जितना कार्यपालिका पर।

अधिकार क्षेत्र को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच खींचतान किस कदर बढ़ती जा रही है, रविवार को इसकी झलक देखने को मिली. संविधान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के बीच तकरार हो गई।

कानून मंत्री की टिप्पणी का जवाब देते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि एक-दूसरे के लिए सम्मान की भावना होनी चाहिए और किसी भी अंग द्वारा प्रधानता का दावा नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रधानमंत्री का सपना है की भारत साक्षर, शिक्षित और डिजिटल रूप से सशक्त बने और न्यायपालिका इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संवैधानिक प्रेरक की भूमिका निभा रहा है।

देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने न्यायिक सक्रियता की धारणा को खारिज करते हुए शनिवार को कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करना  ‘न्यायपालिका का पावन कर्तव्य’ है और अगर कोई भी सरकारी संस्थाएं नागरिक अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो यह न्यायपालिका का नैतिक दायित्व है कि वह उनके साथ (नागरिकों के साथ) खड़ा हो। राष्ट्रीय कानून दिवस पर यहां विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं और सरकारी संस्थाओं से उम्मीद की जाती है कि वे इनका अतिक्रमण न करें।

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