उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने केन्द्र को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि आप चुनी हुई सरकारों के अधिकारों को छीन रहे है। मंगलवार को न्यायालय पीठ अपदस्थ मुख्यमंत्री हरीश रावत एवं संबंधित पक्षों द्वारा राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
इस पर न्यायालय ने केन्द्र को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाकर वह निर्वाचित सरकारों के अधिकार को हड़प रहा है और अराजकता फैला रहा है तथा इस प्रकार से विधानसभा में शक्ति परीक्षण की शुचिता को समाप्त नहीं किया जा सकता हैं।
मुख्य न्यायाधीश के.एम. जोसफ और न्यायमूर्ति वी.के. बिष्ट की पीठ ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की पीठ से पूछा, क्या केंद्र सरकार की इस बात पर थी कि 28 मार्च को शक्ति परीक्षण के दौरान बदली संरचना में और नौ विधायकों के निष्कासन के मद्देनजर क्या होगा। पीठ ने कहा कि बदली संरचना को लेकर चिंतित होना क्या केंद्र सरकार के लिए बिल्कुल विषयेतर नहीं है। राष्ट्रपति 28 मार्च के बाद उत्पन्न होने वाली स्थितियों की प्रतीक्षा कर सकते थे जब सदन में शक्ति परीक्षण होना था।
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दावा किया कि जब धन विधेयक को पेश किया गया तो मत विभाजन की 35 विधायकों की मांग को अनुमति नहीं देने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला लोकतंत्र को तबाह करने जैसा था, क्योंकि 35 बहुमत का नजरिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और विधानसभा अध्यक्ष मिले हुए थे और मत विभाजन की मांग को विफल कर दिया। उन्होंने दावा किया कि चूंकि मत विभाजन नहीं हुआ, इसलिए धन विधेयक विफल हुआ और यह 18 मार्च को राज्य सरकार का गिर जाना का मामला हुआ।
अदालत ने कहा, ‘यदि वह (केन्द्र) जानता भी था तो केन्द्र के लिए इस (अयोग्यता) पर विचार करना अप्रासंगिक है। यदि उसने (केन्द्र ने) इस पर विचार किया तो उस पर पक्षपात करने तथा राज्य में राजनीति करने का आरोप लगेगा।’’ अदालत ने यह भी कहा कि सरकार यह नहीं कह सकती थी कि मुख्यमंत्री अपने बागी विधायकों को वापस लाने का प्रयास कर रहे थे और उसी समय वह उन्हें अयोग्य घोषित करवाने का प्रयास भी कर रहे थे। ‘‘दोनों बातें एक साथ नहीं चल सकतीं।’’
वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने उत्तराखंड राज्य की तरफ से प्रतिनिधित्व करते हुए केन्द्र से सवाल किया कि यदि केन्द्र के पास भ्रष्टाचार के अकाट्य प्रमाण हैं तो क्या वह सदन में शक्ति परीक्षण होने देता तथा वह मूक दर्शक बने रहकर एक भ्रष्ट एवं गैर कानूनी सरकार को चलने देता। केन्द्र लोकतंत्र की स्पष्ट हत्या में मूक दर्शक नहीं रह सकता। साल्वे ने आगे कहा कि केन्द्र का काम संवैधानिक नैतिकता से संबंधित है, संख्या गणना करने से नहीं।