कमलेश के. झा
बिहार में ज्यों ज्यों चुनाव नजदीक आ रहा है, चुनावी सरगर्मी तेज़ होती जा रही है. और अब की बार बिहार में चाहे कुछ भी हो लेकिन डीएनए जरुर एक चुनावी मुद्दा होगा. यही कारण है की नीतीश कुमार किसी भी कीमत पर इस मुद्दा को नहीं भूलना चाहते हैं. मालूम हो की डीएनए का मुद्दा सब से पहले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पिछले महीने 25 जुलाई में की गई बिहार यात्रा के दौरान मुजफ्फरपुर में दिए गए भाषण से हुआ. मुजफ्फरपुर के परिवर्तन रैली में मोदी ने कहा था की लगता है की नीतीश कुमार के डीएनए में ही कुछ खराबी है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो बीजेपी द्वारा आयोजित जून 2010 में कुमार रात्रि भोज को कैन्सेल नहीं करते. क्योंकि डेमोक्रेसी का डीएनए ऐसा नहीं होता है. मोदी द्वारा इस कमेंट के बाद बिहार के मुख्यमंत्री ने ‘शब्द वापसी’ कम्पैन चलाया है.
गौरतलब हो की कुमार ने इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री को अपने शब्द वापिस लेने के लिए पत्र भी लिखा था. जिसमे उन्होंने कहा था की मेरा डीएनए सभी बिहारिओं के डीएनए के सामान है और इस से पुरे बिहारी अस्मिता को ठेंस पहुंचा है. प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा कमेंट शोभा नहीं देता, इसलिए आप इसे वापिस लें.
इतना ही नहीं अब मोदी द्वारा गया रैली के बाद तो डीएनए का मुद्दा और परवान चढ़ गया है. यही कारण है की कल यानि की 10 अगस्त को नीतीश कुमार ने कहा था की अगर मोदी अपने शब्द वापिस नहीं लेंगे तो हम 50 लाख बिहारिओं का डीएनए मोदी जी को भेजेंगे.
और तो और अब आप फोटो में देख सकते हैं की आज डीएनए को लेकर किस तरह महिला और पुरुष अपने बल और नाखून के सैंपल काट रहे हैं.
इसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है की नितीश कुमार किसी भी कीमत पर डीएनए जैसे चुनावी मुद्दे को नहीं खोना चाहती है. और इसे भूनने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है. लेकिन देखना यह होगा की आखिर मोदी अपने शब्द वापिस लेंगे या इसे कोई और रूप देंगे. खैर जो भी हो यह तो वक़्त ही बतायेगा.
क्या डीएनए का मुद्दा दिल्ली चुनाव में गोत्र के मुद्दे जैसा बन पायेगा? बीजेपी को एक अखबार के विज्ञापन में अरविन्द केजरीवाल के गोत्र पर टिप्पणी बहुत महंगी पड़ी थी और चुनाव में उसे 70 सीटों वाली में असेम्ब्ली में सिर्फ तीन सीटें ही मिल पायी थीं|