सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (24 अप्रैल) को निर्भया फंड के पैसे के उपयोग को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य सरकारों पर कड़ी टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा है कि निर्भया कोष की धनराशि यदि महिलाओं के कल्याण पर ठीक से खर्च नहीं की जाती तो फिर कोई फायदा नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि निर्भया फंड के पैसे को सही तरीके महिला उद्धार पर खर्च नहीं किया जाएगा तो कुछ भी बदलने वाला नहीं है।समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि, “हम महिलाओं एवं बच्चों के फायदे के लिए समय देते रहे हैं। जब तक धनराशि खर्च नहीं की जाती, हम इसके बारे में बातें तो करते रह सकते हैं, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं होने वाला।’ पीठ ने कहा कि, ‘कई ऐसी चीजें हैं जो हमें महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण के लिए करनी है।’
सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना के तहत केंद्र द्वारा राज्यों को आवंटित धनराशि का ब्योरा मांगा है। बता दें कि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक चलती बस में एक लड़की से सामूहिक बलात्कार और फिर उसकी हत्या के बाद 2013 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने इस योजना की घोषणा की थी, ताकि देश भर में महिला सुरक्षा की पहलों का समर्थन किया जा सके। न्यायालय ने कहा कि इस योजना के तहत धन की कोई कमी नहीं है, लेकिन मुद्दा इसके उचित उपयोग का है।
इस मामले में अदालत की सहायता के लिये नियुक्त वकील इंदिरा जयसिंह ने भारत में यौन उत्पीड़न के मामलों में दोषसिद्धि की दर बहुत कम होने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि इसकी एक वजह यह है कि अधिकारी इन मामलों में पूरे मुकदमे के दौरान पीड़ितों का समर्थन नहीं करते।
इंदिरा जयसिंह ने कहा कि मामले के नतीजे का इंतजार किए बगैर यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को कुछ अंतरिम मुआवजा दिया जाना चाहिए, क्योंकि पीड़ित मुआवजा योजना का मकसद उसका पुनर्वास है और मुकदमे के दौरान उसका समर्थन करना भी है। पीड़ित मुआवजा योजना के बाबत जयसिंह ने कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकार ने देश भर में पीड़ित मुआवजा पर एक विस्तृत योजना का प्रस्ताव किया है।