सात वर्षीय बेटे अविनाश राउत के माता-पिता जो एक किराए के घर में रह रहे थे, दक्षिण दिल्ली के एक चार मंजिला इमारत की छत से कूदकर जान दे दी। जान देने से पहले लिखा,”इसमें किसी कि गलती नहीं, यह हमारा निर्णय है। ”
पुलिस के मुताबिक, करीब एक घंटे पहले ही 8 सितम्बर कि रात को लक्ष्मीचंद्र और बबिता अपने बेटे अविनाश के शव को दफ्नाके आये थे, जिसकी मौत दिल्ली के एक अस्पताल में डेंगू से हुई थी। इससे पहले माता-पिता अपने बच्चे के लिए अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे और कहीं भी उसके लिए एक बिस्तर का इंतज़ाम नही कर पाये और जब तक वह दिल्ली के बत्रा अस्पताल पहुँचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
एक दिन के इलाज़ के बाद डॉक्टर ने अविनाश को मृत घोषित कर दिया। पूरी तरह से टूट चुके माता-पिता ने उस रात छतरपुर में अपने बेटे का अंतिम संस्कार किया। उसके बाद करीब 2.30 बजे, पड़ोसियों को एक सरकारी स्कूल के परिसर के अंदर लक्ष्मीचंद्र और बबीता के शव मिले उनके हाथ एक साथ बंधे हुए थे।
दिल्ली के लाडो सराय में बिल्डिंग नंबर M212 पर दंपति के किराए पर रहते थे। कविता सेजवाल, उनकी मकान मालकिन ने बताय़ा कि,”बबिता का बायां हाथ और लक्ष्मीचंद्र का दायां हाथ एक दुपट्टे से एक दूसरे के साथ बंधा हुअा था। बबिता ने वही नाईट ड्रेस पेहेन रखी थी जिसमें हमने उसे आखिरी बार करीब 1 घंटे पहले देखा था। ”
उन्होंने बताया कि लक्ष्मीचंद्र एक निजी फर्म का कर्मचारी था, जो पिज्जा हट के लिए सर्विसेज प्रदान करता था। बबिता घर संभालती थी और अविनाश पहली कक्षा में पड़ता था।
चंद्र भानु मोहंती, लक्ष्मीचंद्र के एक सहयोगी ने बताया कि,”लक्ष्मीचंद्र और बबिता एक साथ एक कॉलेज में पड़ते थे जिसके बाद वह एक दूसरे को पसंद करने लगे और फिर उन्होंने शादी कर ली। लक्ष्मीचंद्र एक विज्ञान स्नातक था जिसने बाद में एमबीए भी किया था। इस काम से पहले वह लेखांकन में काम करता था।”
ज्ञानेंद्र देबाशीष, लक्ष्मीचंद्र का एक पडोसी जो ओड़िसा में ही रहता था उसने बताया कि,”बिट्टू की हालत खराब होने के बाद लक्ष्मीचंद्र और बबिता 7 सितंबर को लगभग 6 बजे बिट्टू ले कर अस्पताल के लिए भाग रहे थे। ”
अविनाश या बिट्टू का करीब तीन से चार दिन तक इलाज़ चला, आगे ज्ञानेन्द्र ने बताया कि,”7 सितम्बर को बबिता ने मेरी बीवी को बताया था की डॉक्टर ने बिट्टू को एडमिट कराने के लिए बोला है पर उसने कहा कि बिट्टू बिलकुल सही दिख रहता खेल कूद रहा था तो वह उसको वापस घर ले आई। ”
धर्मो देवी,बबिता की सास ने बताया कि,”शाम तक उसका शरीर ठंडा पड़ने लगा था और दर्द कि शिकायत करने लगा था। उसने बात करने पर बताया कि ‘दादी , मेरा सर फैट जाएगा’ ”
बनलता मोहराना, परिवार कि दूसरी पडोसी ने बताया कि,”हम क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पतालों में गए जैसे मूलचंद मेडिसिटी और मैक्स साकेत, पर उन्होंने कहा डेंगू के मरीजों के लिए सभी बेड्स भर चुके हैं। अंत में, हम तुगलकाबाद एक्सटेंशन के बत्रा अस्पताल में गए जो कि यहां से करीब 187km कि दूरी पर है। जहां बिट्टू करीब चार से पांच घंटों तक भर्ती रहा। ”
बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर (BHMRC) ने बात चीत में बताया,”हमने कन्फर्म कर दिया था कि बच्चे की हालत डेंगू के कारण बहुत नाज़ुक है, वह बच्चे को करीब रात के 11बजे ले कर आये हमने तुरंत उसे बाल चिकित्सा आईसीयू में भर्ती किया। पूरा अच्छे से इलाज़ करने के बावजूत हम उसे बचा नहीं पाये। ”
पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) प्रेमनाथ ने बतया कि मरने से पहले दंपत्ति एक पैन का सुसाइड नोट छोड़ के गए हैं, और दोनों के ही पोस्टमॉर्टेम के लिए भेज दिया गया है।
08-09 सितम्बर के दरमियान करीब रात के तीन बजे पुलिस के पास फ़ोन आया कि एक दंपत्ति लापता हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया की,”तहकीकात के बाद हमें उनके खून से लटपट शव उन ही के घर के बगल में एक सरकारी स्कूल परिसर के अंदर मिले जिसके बाद तुरंत एफआईआर दर्ज की गयी। पोस्ट मोर्टेम रिपोर्ट्स आगयीं हैं। ”
देबाशीष ने बतायाकि,”बबिता अविनाश कि मौत के बाद बहुत ज्यादा परेशान थी जबकि लक्ष्मीचंद्र बिलकुल सुन्न सा पड़ गया था। हमारी परम्पराओं के हिसाब से इतने छोटे बच्चे को दफनाया जाता है तो जब हम दफना रहे थे तब बबिता ने हमको बोला कि हम अविनाश के कान में बोलें कि वह उसका इंतज़ार करेंगे। हमारे समाज में माना जाता है कि यदि एक बच्चे कि मौत के बाद माँ दोबारा गर्ववती हो तो भी बच्चा वापस आजाता है। ”
मोहराना ने बताया कि बबिता बार बार बोल रही थी कि “जब मेरा बीटा मिटटी में सो रहा है तो मई बिस्तर पर कैसे सो सकती हूँ।
बबिता और लक्ष्मीचंद्र घर से कह कर निकले थे की वह वाक पर जा रहे हैं।
गुरूवार को सुबह बबिता के पिता ने और बाकी परिवार वालो ने दम्पत्ति का अंतिम संस्कार किया।