सितार और सुरबहार वादन को विश्व भर में ख्याति दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद इमरत खान का अमेरिका में निधन हो गया। वह 83 वर्ष के थे। उनके बेटे ने शुक्रवार (23 नवंबर) को यह जानकारी दी। खान ने सेंट लुईस स्थित एक अस्पताल में गुरुवार को अंतिम सांस ली। वह कुछ समय से बीमार चल रहे थे और गत सप्ताह उनको अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। वह पिछले दो दशक से सेंट लुईस में रह रहे थे।
उनके बेटे निशात खान ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताया कि उन्होंने सेंट लुई के एक अस्पताल में गुरुवार को अंतिम सांस ली। खुद भी एक मशहूर सितारवादक निशात ने अमेरिका रवाना होने से पहले कहा, “उन्हें निमोनिया हो गया था। वह एक हफ्ते से अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें पिछली रात दौरा पड़ा था। वह पिछले कुछ महीनों से बीमार चल रहे थे।” उनका अंतिम संस्कार शनिवार को किया जाएगा।
खान के शोकसंतप्त भतीजे हिदातय हुसैन खान ने समाचार एजेंसी IANS से कहा, “उनके निधन से क्षति को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। अल्लाह उनकी रूह को जन्नत नसीब करे।” वह इटावा घराने के थे, जिसकी परंपरा के इतिहास 16वीं सदी से शुरू होती है, जहां चार सौ साल से पिता द्वारा पुत्र को संगीत की विद्या का प्रशिक्षण देने की परंपरा रही है।
इमरत खान मशहूर सितार वादक विलायत खान के छोटे भाई थे। उनका जन्म कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था। उनके पिता इनायत खान अपने जमाने के मशहूर सितार वादक थे। इसी प्रकार उनके दादा इमदाद खान भी अपने जमाने के मशहूर संगीतज्ञ थे। इमरत खान ने पिछले साल पद्मश्री अलंकरण यह कहते हुए वापस कर दिया था कि उनको सम्मान देने में बहुत विलंब कर दिया गया।
उनका कहना था कि उन्हें यह सम्मान कई दशकों के विलंब से दिया जा रहा है और यह उनकी विश्वव्यापी प्रतिष्ठा और योगदान के अनुकूल भी नहीं है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म सम्मान के लिए उनके नाम की घोषणा के बाद शिकागो स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास ने सेंट लुइस में इमरत खान से संपर्क किया था। तो जवाब में उन्होंने दूतावास को बताया था कि उनके ‘जूनियर्स’ को पहले ही पद्म भूषण सम्मान से नवाजा जा चुका है, लिहाजा पद्मश्री दिए जाने के फैसले से उन्हें मिश्रित भावनाओं की अनुभूति हो रही है।