सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को कथित रूप से ठेस पहुंचाने के कारण वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ गुजरात के राजकोट में दर्ज कराई गई एक प्राथमिकी के मामले में उन्हें दंडात्मक कार्रवाई से शुक्रवार (1 मई) को संरक्षण प्रदान कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ दर्ज एफआईआर के मद्देनजर पुलिस कार्रवाई पर रोक लगा दी और राज्य पुलिस से जवाब तलब किया है।

गौरतलब है कि, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ पूर्व सैनिक जयदेव रजनीकांत जोशी ने राजकोट में प्राथमिकी दर्ज कराई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि प्रशांत भूषण ने दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत धारावाहिक के फिर से प्रसारण के खिलाफ ट्वीट करके हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अंतरिम राहत और संरक्षण प्रदान करते हुए कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति टीवी पर कुछ भी देख सकता है।’’ साथ ही पीठ ने सवाल किया कि कोई किसी कार्यक्रम विशेष को नहीं देखने के लिए लोगों से कैसे कह सकता है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने वीडियो कांफ्रेन्सिग के माध्यम से प्रशांत भूषण की याचिका पर सुनवाई की और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया। पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद आगे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। भूषण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने यह प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध करते हुए पीठ से कहा कि फिलहाल उन्हें किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण प्रदान किया जाए।
जोशी ने अपनी शिकायत में भूषण पर आरोप लगाा कि उन्होंने 28 मार्च को एक ट्वीट में रामायण और महाभारत के लिये ‘अफीम’ शब्द का इस्तेमाल करके तमाम हिन्दुओं की भावनाओं को आहत किया है। दवे ने कहा कि वह इस मुद्दे पर नहीं है कि लोगों को क्या देखाना चाहिए और क्या नहीं बल्कि वह तो सिर्फ प्राथमिकी दर्ज किए जाने के खिलाफ ही बहस कर रहे हैं। इस बीच, रजिस्ट्री के सूत्रों ने बताया कि प्रशांत भूषण ने गुरुवार को यह यचिका दायर की थी और यह सुनवाई के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध हुई। (इंपुट: भाषा के साथ)