नोटबंदी को लेकर जारी घमासान के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पद छोड़ने के एक साल बाद पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी है। राजन ने कहा है कि नोटबंदी के सरकार के विचार से असहमति जताने के बाद बैंक से इस मुद्दे पर नोट तैयार करने को कहा गया था। आरबीआई ने अपने नोट में सरकार को बिना तैयारी नोटबंदी लागू करने को लेकर आगाह भी किया था। राजन ने अपनी नई किताब ‘आई डू व्हाट आई डू’ में इसका उल्लेख किया है।हिंदुस्तान में छपि रिपोर्ट के मुताबिक, राजन ने अपनी किताब में स्पष्ट किया है कि उन्होंने नोटबंदी का कभी समर्थन नहीं किया था। उनका मानना था कि इस फैसले से अल्पकाल में होने वाला नुकसान लंबी अवधि में इससे होने वाले फायदों पर भारी पड़ेगा। राजन की यह किताब सरकार से उनके असहज रिश्तों और मतभेदों पर भी रोशनी डालती है।
राजन ने स्पष्ट किया है कि उनके कार्यकाल के दौरान कभी भी आरबीआई से नोटबंदी पर फैसला लेने को नहीं कहा गया। इस बयान से उन अटकलों पर भी विराम लग गया कि 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की चौंकाने वाली घोषणा के कई माह पहले ही बड़े नोटों को हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी।
राजन ने कहा कि उन्होंने काले धन को सिस्टम में लाने का मकसद पूरा करने के दूसरे तरीके भी सुझाए थे। उन्होंने कहा कि फरवरी 2016 में सरकार ने नोटबंदी पर उनसे राय मांगी थी और उन्होंने मौखिक रूप में अपनी राय बता दी थी। राजन के अनुसार, इसके बाद मोदी सरकार ने नोटबंदी को लेकर नोट तैयार करने को कहा और केंद्रीय बैंक ने ऐसा ही किया। आरबीआई ने नोट में नोटबंदी के पड़ने वाले प्रभावों, फायदों के बारे में बताया गया।
साथ ही सरकार जिन उद्देश्यों को पूरा करना चाहती थी कि उनके वैकल्पिक रास्ते भी बताए गए। इसमें कहा गया कि अगर सरकार नफा-नुकसान पर गौर करने के बाद भी नोटबंदी पर आगे बढ़ना चाहती है तो उसके लिए समय और तैयारियों की जरूरत होगी। यह भी बताया कि बिना तैयारी के क्या नतीजा हो सकता है।
इसके बाद सरकार ने निर्णय करने के लिए समिति बना दी। समिति में आरबीआई की ओर से करेंसी से जुड़े डिप्टी गवर्नर को शामिल किया गया। इसका मतलब संभवत: यह था कि राजन ने स्वयं इन बैठकों में हिस्सा नहीं लिया। राजन 3 सितंबर 2016 को गवर्नर पद से रिटायर हुए हैं, और इस वक्त शिकागो यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं।
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने नोटबंदी को लेकर आंकड़ें जारी किए हैं, जिसके मुताबिक 500 और 1000 के 99 फीसदी पुराने नोट बैंकिंग सिस्टम में आ गए हैं। दरअसल, नोटबंदी के कदम के समर्थन में सरकार ने कहा था कि इससे कालेधन, भ्रष्टाचार और नकली मुद्रा पर लगाम लगेगी। रिपोर्ट आने के बाद विपक्षी पार्टियां तो सरकार को घेर ही रही हैं, सोशल मीडिया पर भी लोग इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं।