हिंदी समाचार चैनल आजतक के एंकर और वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना का शुक्रवार (30 अप्रैल) को कोरोना वायरस के कारण निधन हो गया। रोहित सरदाना को श्रद्धांजलि देते हुए समाचार चैंनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ के एंकर और भारत के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने एक बड़ा सवाल उठाया है। रवीश कुमार ने भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि, कोविड के दौरान कई पत्रकारों की जान चली गई। सूचना प्रसारण मंत्रालय उन पत्रकारों के बारे में कभी ट्वीट नहीं करता। पत्रकार मरते जा रहे हैं पर सूचना प्रसारण मंत्रालय को प्रधानमंत्री की छवि चमकाने से ही फुर्सत नहीं है।
बता दें कि, लंबे समय तक समाचार चैनल ‘जी न्यूज’ में एंकर रहे वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना इन दिनों ‘आज तक’ चैनल में सेवाएं दे रहे थे। शाम को प्रसारित होने वाले डिबेट शो ‘दंगल’ की वह ऐंकरिंग करते थे। उन्हें पत्रकारिता जगत के कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया था और बेबाक तरीके से अपनी बात रखने के लिए जाना जाता था। 2018 में ही रोहित सरदाना को गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से नवाजा गया था।
रोहित सरदाना ने 24 अप्रैल को ट्वीट कर बताया था कि वो सीटी स्कैन में कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। तब उन्होंने यह भी कहा था कि हालत में बेहतरी हो रही है लेकिन छह दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। नोएडा के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। रोहित सरदाना के निधन पर पत्रकारिता और राजनीति के कई बड़े चेहरों ने ट्वीट करके उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे है।
आप भी पढ़िए रवीश कुमार का फेसबुक पोस्ट:
आज तक के एंकर रोहित सरदाना के निधन की ख़बर से स्तब्ध हूँ। कभी मिला नहीं लेकिन टीवी पर देख कर ही अंदाज़ा होता रहा कि शारीरिक रुप से फ़िट नौजवान हैं। मैं अभी भी सोच रहा हूँ कि इतने फ़िट इंसान के साथ ऐसी स्थिति क्यों आई। या इतनी तादाद में क्यों लोग अस्पताल पहुँच रहे हैं? क्या लोग अपने लक्षण को नहीं समझ पा रहे है, समझा पा रहे हैं या डाक्टरों की सलाह को पूरी तरह से नहीं मान रहे हैं या एक से अधिक डाक्टरों की सलाह में उलझे हैं? मैं नहीं कहना चाहूँगा कि लापरवाही हुई होगी। यह सवाल मैं केवल रोहित के लिए भी नहीं कर रहा हूँ। हमें ध्यान रखना चाहिए कि बात सिर्फ़ दिल्ली की नहीं हो रही है। ज़िलों और क़स्बों की हो रही है। मैं लगातार इस सवाल से जूझ रहा हूँ कि घरेलु स्तर पर इलाज में क्या कमी हो रही है जिसके कारण इतनी बड़ी संख्या में लोग अस्पताल जा रहे हैं? कई जगहों से डाक्टरों के बनाए व्हाट्स एप फार्वर्ड आ जा रहे हैं। जिनमें कई दवाओं के नाम होते हैं। उसके बाद मरीज़ और डाक्टर के बीच संवाद रहता है या नहीं। मैं डाक्टर नहीं हूँ। लेकिन कोविड से गुज़रते हुए जो ख़ुद अनुभव किया है कि उससे लगता है कि मरीज़ और डाक्टर के बीच संवाद की कमी है। इस वक़्त डाक्टर काफ़ी दबाव में हैं। और मरीज़ डाक्टर से भी ज़्यादा डाक्टर हो चुके हैं।
इसलिए मैंने एक कमांड सेंटर बनाने का सुझाव दिया था जहां देश भर से रैंडम प्रेसक्रिप्शन और मरीज़ के बुख़ार के डिटेल को लेकर अध्ययन किया जाता और अगर इस दौरान कोई चूक हो रही है तो उसे ठीक किया जाता। जो अच्छे डाक्टर हैं उनके अनुभवों का लाभ ज़िलों तक एक साथ पहुँचाया जा सकता ताकि डाक्टरों की दुनिया अपने अनुभवों को लगातार साझा करती रहे। यह काम कमांड सेंटर से ही हो सकता है क्योंकि निजी तौर पर अब डाक्टर के पास कम वक़्त है। मैं रोहित के निधन से स्तब्धता के बीच इन सवालों से अपना ध्यान नहीं हटा पा रहा हूँ। बात भरोसे के डाक्टर की नहीं है और न नहीं डाक्टर के अच्छे बुरे की है। बात है इस सवाल का जवाब खोजने की कि क्यों इतनी बड़ी संख्या में मरीज़ों को अस्पताल जाने की नौबत आ रही है?
कई लोग लिख रहे हैं कि आज तक ने रोहित सरदाना के निधन की ख़बर की पट्टी तुरंत नहीं चलाई। मेरे ख़्याल से इस विषय को महत्व नहीं देना चाहिए। आप सोचिए जिस न्यूज़ रूम में यह ख़बर पहुँची होगी, बम की तरह धमाका हुआ होगा। उनके सहयोगी साथी सबके होश उड़ गए होंगे। सबके हाथ-पांव काँप रहे होंगे। आप बस यही कल्पना कर लीजिए तो बात समझ आ जाएगी। दूसरा, यह भी मुमकिन है कि रोहित के परिवार में कई बुजुर्ग हों। उन्हें सूचना अपने समय से हिसाब से दी जानी है। अगर आप उसे न्यूज़ चैनल के ज़रिए ब्रेक कर देंगे तो उनके परिवार पर क्या गुज़रेगी। तो कई बार ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं। इसके अलावा और कोई बात हो तो वहाँ न्यूज़ रूम में खड़े उनके सहयोगी सच का सामना कर रही रहे होंगे। बात भले बाहर न आए, उनकी आँखों के सामने से तो गुज़र ही रही होगी।
ख़बर बहुत दुखद है। कोविड के दौरान कई पत्रकारों की जान चली गई। सूचना प्रसारण मंत्रालय उन पत्रकारों के बारे में कभी ट्विट नहीं करता। आप बताइये कि कितने पत्रकार देश भर में मर गए, सूचना प्रसारण मंत्री ने उन्हें लेकर कुछ कहा। उन्हें हर वक़्त प्रधानमंत्री की छवि चमकाने से फ़ुरसत नहीं है। इस देश में एक ही काम है। लोग मर जाएँ लेकिन मोदी जी की छवि चमकती रहे। आप लोग भी अपने घर में मोदी जी के बीस बीस फ़ोटो लगा लें। रोज़ साफ़ करते रहें ताकि उनका फ़ोटो चमकता रहे। उसे ट्वीट कीजिए ताकि उन्हें कुछ सुकून हो सके कि मेरी छवि घर घर में चमकाई जा रही है।
आम लोगों की भी जान चली गई । प्रभावशाली लोगों को अस्पताल नहीं मिला। आक्सीजन नहीं मिला। वेंटिलेटर बेड नहीं मिला। आप मानें या न मानें इस सरकार ने सबको फँसा दिया है। आप इनकी चुनावी जीत की घंटी गले में बांध कर घूमते रहिए। कमेंट बाक्स में आकर मुझे गाली देते रहिए लेकिन इससे सच नहीं बदल जाता है। लिखने पर केस कर देने और पुलिस भेज देने की नौबत इसलिए आ रही है कि सच भयावह रुप ले चुका है। जो लोग इस तरह की कार्रवाई के साथ हैं वो इंसानियत के साथ नहीं हैं।
इस देश को झूठ से बचाइये। ख़ुद को झूठ से बचाइये। जब तक आप झूठ से बाहर नहीं आएँगे लोगों की जान नहीं बचा पाएँगे। अब देर से भी देर हो चुकी है। धर्म हमेशा राजनीति का सत्यानाश कर देता है और उससे बने राजनीतिक समाज का भी। ऐसे राजनीतिक धार्मिक समाज में तर्क और तथ्य को समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इसलिए व्हाट्एस ग्रुप में रिश्तेदार अब भी सरकार का बचाव कर रहे हैं। जबकि उन्हें सवाल करना चाहिए था। अगर वे समर्थक होकर दबाव बनाते तो सरकार कुछ करने के लिए मजबूर होती।
अब भी सरकार की तरफ़ से फोटोबाज़ी हो रही है। अगर उससे किसी की जान बच जाती है तो मुझे बता दीजिए। जान नहीं बची। आँकड़ों को छिपा लीजिए। मत छापिए। मत छपने दीजिए। बहुत बहादुरी का काम है। बधाई। आप सबको डरा देते हैं और सब आपसे डर जाते हैं। कितनी अच्छी खूबी है सरकार की। घर- घर में लोगों की जान गई है वो जानते हैं कि कब कौन और कैसे मरा है।
रोहित सरदाना को श्रद्धांजलि। उनके परिवार के बारे में सोच रहा हूँ। कैसे उबरेगा इस हादसे और ऐसे हादसे से भला कौन उबर पाता है। भारत सरकार से माँग करूँगा कि रोहित के परिवार को पाँच करोड़ का चेक दे और वो भी तुरंत ताकि उसके परिवार को किसी तरह की दिक़्क़त न आए।सरकार को पत्रकारों की मदद करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। बिल्कुल दूसरे पत्रकारों को भी दे। कम से कम इसी बहाने इस बात की शुरूआतें होनी चाहिए कि जिन पत्रकारों की कोविड से मौत हुई है उनके लिए सरकार क्या सोच रही है। आज तक में रोहित के सहयोगियों को इस दुखद ख़बर को सहने की ताक़त मिले।
नोट- जो लोग रोहित के निधन पर अनाप-शनाप कहीं भी लिख रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि फ़र्ज़ इंसान होने का है। और यह फ़र्ज़ किसी शर्त पर आधारित नहीं है। तो इंसान बनिए। अभी भाषा में मानवता और इंसानियत लाइये। इतनी सी बात अगर नहीं समझ सकते तो अफ़सोस।विनम्र बनिए। इससे बड़ा कुछ नहीं है। किसी को पता नहीं है कि कौन किससे बिछड़ जाए। सारे झगड़े और हिसाब-किताब फ़िज़ूल के हैं इस वक़्त।
रोहित सरदाना के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई दिग्गज नेताओं ने शोक जताया है।