वित्त मंत्रालय ने कालेधन के अनुमान को लेकर तैयार तैयार तीन रिपोर्टों को साझा करने से इनकार कर दिया है। मंत्रालय का कहना है कि इन रिपोर्ट्स का खुलासा करना संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन होगा। ये तीनों रिपोर्ट्स देश और विदेश में भारतीयों के पास मौजूद कालेधन के बारे में हैं।
तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 2011 में दिल्ली के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस ऐंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) और राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान (एनआईएफएम), फरीदाबाद से ये अध्ययन कराए थे।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में वित्त मंत्रालय ने कहा कि एनआईपीएफपी, एनसीएईआर और एनआईएफएम की रिपोर्ट्स सरकार को क्रमश: 30 दिसंबर, 2013, 18 जुलाई, 2014 और 21 अगस्त, 2014 को मिली थीं।
मंत्रालय ने कहा कि इन्हें पिछले साल 21 जुलाई को वित्त पर संसद की स्थायी समिति को सौंपा गया। अब यह मामला समिति के पास है। आरटीआई आवेदन के जवाब में मंत्रालय ने कहा, ‘इस तरह की सूचना का खुलासा संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन होगा। ऐसे में आरटीआई कानून की धारा 8 (1) (सी) के तहत इस तरह की सूचना का खुलासा नहीं करने की छूट है।’
इस धारा के तहत उन सूचनाओं का खुलासा करने पर रोक है जिनसे संसद के विशेषाधिकार का हनन होता हो। फिलहाल देश और विदेश में भारतीयों के कालेधन का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। अमेरिकी शोध संस्थान ग्लोबल फाइनैंशल इंटिग्रिटी (जीएफआई) के एक अध्ययन के अनुसार 2005 से 2014 के दौरान भारत में अनुमानत: 770 अरब डॉलर का कालाधन आया। इस अवधि में देश से 165 अरब डॉलर का कालाधन बाहर गया।