नए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने रविवार (2 दिसंबर) को अपना पदभार ग्रहण कर लिया। वह निवर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त ओ. पी. रावत का स्थान लिए हैं। आपको बता दें कि निवर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत 1 दिसंबर को अपने पद से रिटायर हो गए और उनकी जगह सुनील अरोड़ा को नए मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभाल लिए हैं। इस बीच रावत ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर सवाल उठाया है।
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के बातचीत के दौरान ओपी रावत कहा कि नोटबंदी का चुनावों के दौरान कालेधन के इस्तेमाल पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। हमने हाल ही में पांच राज्यों के चुनावों के दौरान भी 200 करोड़ रुपए की रिकॉर्ड रकम सीज की है। इसका मतलब ये है कि चुनावों के दौरान जिस सोर्स से पैसा चुनावों में आ रहा है, वह बेहद प्रभावी है और नोटबंदी का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।
आपको बता दें कि इससे पहले अभी हाल ही में देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यन ने भी पहली बार केंद्र की मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए नोटबंदी को देश के लिए जबरदस्त मौद्रिक झटका करार दिया था, जिससे देश की विकास दर पटरी से उतर गई।
अपनी किताब के एक चैप्टर ‘द टू पज़ल्स ऑफ डिमोनेटाइजेशन- पॉलिटिकल एंड इकॉनोमिक’ में उन्होंने लिखा है, नोटबंदी एक बड़ा, सख्त और मौद्रिक झटका था, इसके बाद बाजार से 86 फीसदी मुद्रा हटा ली गई थी। इस फैसले की वजह से जीडीपी प्रभावित हुई थी। ग्रोथ पहले भी कई बार नीचे गिरी है, लेकिन नोटबंदी के बाद यह एक दम से नीचे आ गई। जब नोटबंदी लागू की गई थी तब अरविंद सुब्रमण्यन भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे।
आपको बता दें कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर करने की घोषणा की थी। उस वक्त बाजार में चल रही कुल करेंसी का 86 प्रतिशत हिस्सा यही नोट थे। जानकारों ने तभी नोटबंदी के फैसले के कारण अर्थव्यवस्था की हालत बुरी होने, बेरोजगारी बढ़ने और सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी कम होने की आशंका जताई थी और नोटबंदी के बाद जितने भी रिपोर्ट आए उसमें यह साबित भी हुआ।
सरकार के दावों की खुली पोल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाइव टेलीकास्ट में अपने संदेश में कहा था कि नोटबंदी लागू करने से काले धन और नकली नोटों पर रोक लगाई जा सकेगी। लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट ने सरकार के दावों पोल खोलकर रख दी है। आरबीआई के अनुसार अब तक कुल 15 लाख 31 हजार करोड़ रुपए के पुराने नोट वापस आ गए हैं। जबकि नोटबंदी से पहले कुल 15 लाख 41 हजार करोड़ रुपए की मुद्रा प्रचलन में थी। इसका मतलब है कि बंद नोटों में सिर्फ 10,720 करोड़ रुपये ही बैंकों के पास वापस नहीं आए हैं।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वित्त वर्ष 2017-18 के एनुअल रिपोर्ट में कहा है कि 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लागू होने के बाद 1000 और 500 रुपए के पुराने नोट तकरीबन वापस आ गए हैं। आरबीआई के मुताबिक नोटबंदी लागू होने के बाद बंद किए गए 500 और 1,000 रुपये के नोटों का 99.3 प्रतिशत बैंको के पास वापस आ गया है। इसका तात्पर्य है कि बंद नोटों का एक काफी छोटा हिस्सा ही प्रणाली में वापस नहीं आया। देश में इससे पहले 16 जनवरी 1978 को जनता पार्टी की गठबंधन सरकार ने भी इन्हीं कारणों से 1000, 5000 और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण किया था।