दिल्ली की एक अदालत ने साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में आरोपियों को मंगलवार को सजा सुनाई। कोर्ट ने एक को फांसी जबकि दूसरे को उम्रकैद की सजा सुनाई। वहीं, कांग्रेस ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि उसे ‘गर्व’ है कि कानूनी प्रक्रिया को पूरा होने दिया जा रहा है।
समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया पर कांग्रेस का रुख स्पष्ट है कि कानूनी प्रक्रिया पर किसी तरह का बाहरी प्रभाव नहीं होना चाहिए। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी फैसले का स्वागत किया और कहा कि ‘जघन्य अपराध’ के गुनाहगारों के खिलाफ न्याय हुआ है।
बता दें कि दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार (20 नवम्बर) को 1984 के दंगों के दौरान महिपालपुर में दो युवकों की हत्या करने के अपराध में दिल्ली के यशपाल सिंह को मौत की सज़ा सुनाई है, वहीं दूसरे अभियुक्त नरेश सहरावत को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है।
जानिए मामले की पूरा घटनाक्रम
एक नवम्बर, 1984: सिखों के खिलाफ 1984 के दंगों में दक्षिण दिल्ली के महिपालपुर में हिंसक भीड़ ने हरदेव सिंह और अवतार सिंह की हत्या कर दी।
23 फरवरी 1985: जयपाल सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया।
मई 1985, जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन
नौ सितंबर 1985: हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह ने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग के समक्ष हलफनामा दाखिल दिया और दिल्ली पुलिस की दंगा रोधी प्रकोष्ठ ने जांच शुरू की।
20 दिसंबर 1986: जसपाल सिंह को बरी कर दिया गया।
1993: सिंह के हलफनामे पर न्यायमूर्ति जे डी जैन और न्यायमूर्ति डी के अग्रवाल की समिति की सिफारिश पर वसंत कुंज पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया।
नौ फरवरी, 1994: दिल्ली पुलिस किसी भी आरोपी के खिलाफ अभियोग चलाने के लिए सुबूत एकत्र नहीं कर सकी और जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।
12 फरवरी,2015: गृह मंत्रालय ने 1984 दंगों की पुन: जांच के लिए एसआईटी का गठन किया।
31 जनवरी 2017: एसआईटी ने नरेश सहरावत और यशपाल सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया और 18 गवाहों का जिक्र किया।
14 नवम्बर 2018: अदालत ने सिंह और सहरावत को दो लोगों की हत्या का दोषी ठहराया।
20 नवम्बर 2018: दिल्ली की अदालत ने यशपाल को मृत्युदंड और शेहरावत को उम्रकैद की सजा सुनाई।