दिहाड़ी मजदूरों को पुलिस ने जैश के आंतकवादी बनाकर पेश किया

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दिल्ली में बड़े आंतकवादी हमले की साजिश का पर्दाफाश करने वाली पुलिस ने चांद बाग से जिन लड़कों को पकड़ा है स्वत्रंत पत्रकार शाहनवाज मलिक ने चांद बाग जाकर वहां की सारी असलियत को मालूम किया कि क्या सच में ये लड़के जैश जैसे आंतकवादी संगठन से जुडे़ है या सच्चाई कुछ और है।

शाहनवाज मलिक लिखते है कि सेल ने कुल 13 लड़कों को अलग-अलग इलाकों से हिरासत में लिया था। इनमें छह लड़के गोकलपुरी के चांद बाग इलाके के रहने वाले हैं।

स्पेशल सेल का दावा है कि इन लड़कों का जैश से संबंध का पता एजेंसी को 18 अप्रैल को चला था। गिरफ्तारी के बाद स्पेशल सेल ने इनसे पूछताछ की है। इसके बाद सेल ने कहा है कि चांद बाग के मुहम्मद साजिद ने पूछताछ में जैश-ए मुहम्मद से अपने संबंध कुबूल कर लिए हैं।

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साजिद के सबसे बड़े भाई मोहम्मद तय्यूब बताते हैं, मस्जिद से निकल रहे नमाज़ियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, जवाब में सेल के जवानों ने कहा कि कोई बीच में नहीं आएगा, वरना गोली मार देंगे। मोहम्मद साजिद मूलतरू बुलंदशहर के दौलतपुर गांव के रहने वाले हैं. इनके पिता निजामुद्दीन दिल्ली में मिस्त्री का काम करते थे जो अब नहीं हैं. मोहम्मद साजिद कुल चार भाई और दो बहन हैं।

चांद बाग के एफ ब्लॉक में इनका अपना दो मंज़िल का मकान है।
मोहम्मद तय्यूब के मुताबिक तकरीबन 10रू30 बजे स्पेशल सेल की टीम ने उनके घर पर छापेमारी की. कारखाने की चाबी मांगने पर साजिद की मां आमीना ने कहा कि वो साजिद के ही पास है. फिर सीढ़ियों से सटा एक दरवाजा तोड़ दिया गया। साजिद के दूसरे भाई मोहम्मद अयूब कारखाने के पास ही खड़े थे।

तय्यूब का आरोप है कि उन्हें वहां से हटाने के इरादे से पुलिसवालों ने पूछा कि टॉयलेट किधर है। अयूब एक-दो पुलिसवालों को ऊपर टॉयलेट में ले गए लेकिन जब वो लौटकर आए तो कारखाने में पुलिसवाले स्टूल पर कुछ रखकर फोटोग्राफी कर रहे थे। स्टूल पर क्या था? इस पर तय्यूब ने कहा कि गेंद की तरह गोल आकार में कुछ काले रंग में था।

कॉलोनी में लोगों से बातचीत में इस रिपोर्टर को बताया गया कि पुलिसवाले साजिद के घर में बैग लेकर घुसे थे लेकिन कोई साफ-साफ बोलने के लिए तैयार नहीं हुआ कि कितने बैग थे या फिर उनका साइज और रंग क्या था?

कारखाने के अंदर कुरआन और हदीस समेत कुछ इस्लामिक लिटरेचर मौजूद था। साजिद की बहन महजबीं ने बताया कि जाते-जाते पुलिसवाले सारी किताबें अपने साथ ले गए. स्पेशल सेल की यह कार्रवाई साजिद के घर में सुबह साढ़े चार बजे तक चली।

आगे शाहनवाज मलिक लिखते है कि स्पेशल सेल के डीसीपी प्रमोद सिंह कुशवाहा का दावा है कि इस मॉड्यूल का सरगना मोहम्मद साजिद है। वो सेल की निगरानी में था। 3 अप्रैल की दोपहर एक मुखबिर ने स्पेशल सेल को इनपुट दिया कि बीती रात कारखाने में आईईडी जोड़ते वक्त एक विस्फोट हुआ जिसमें साजिद जख्मी हो गया है। उनकी हथेली जल गई है. इसके बाद सेल हरकत में आई और नौ बजे से छापेमारी की कार्रवाई शुरू की। साजिद की बहन स्पेशल सेल के इस दावे को खारिज करती हैं। उनके मुताबिक साजिद का हाथ बारूद से नहीं गर्म दूध से जला है। जो कि मेरे हाथों से ही जला था। महजबीं कहती हैं कि मेरे भीतर एक अपराधबोध है।

मुझे लगता है कि अगर साजिद का हाथ नहीं जला होता तो पुलिस बारूद से हाथ जलने की जो कहानी अभी गढ़ रही है, वो मुमकिन नहीं हो पाती। मोहम्मद साजिद धार्मिक आदमी है। पांच वक्त के पाबंद नमाजी। वह तब्लीगी जमात से सक्रिय रूप से जुड़े हैं। इसका वैश्विक केंद्र साउथ दिल्ली के निजामुद्दीन में है। चांद बाग में रहने वाले मुहम्मद फाज़िल कहते हैं कि साजिद अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं, पूरे इलाके की बड़ीआबादी तब्लीगी जमात से जुड़ी हुई है।

चांद बाग के मोहम्मद अकरम कहते हैं कि अगर पुलिस दहशतगर्दी के इल्जाम में किसी को उठा ले तो हम क्या कर सकते हैं? हम सरकार से नहीं लड़ सकते लेकिन चांद बाग कॉलोनी में एक भी बंदा ऐसा नहीं मिलेगा जो उठाए गए लड़कों को बुरा कहे। हम लोगों ने सभी लड़के बचपन से यहीं खेलते और बड़ा होते देखा है, पूरी कॉलोनी उनके साथ है।

मोहम्मद साजिद और मोहसिन खान के घर आस-पास ही हैं. मोहसिन ने चैथी क्लास तक पढ़ाई की हैं. चार साल पहले उनकी शादी हुई थी और दो जुड़वा बेटियां हैं. मोहसिन कंधे पर लेडीज कपड़ों का गट्ठर रखकर गली-मुहल्ले में बेचते हैं। हर दिन दो से ढाई सौ रुपए कीआमदनी है।

शाहनवाज ने चांद में घुमते हुए पता किया कि अन्य जो लोग पकड़े गए उनमें इमरान खान, अजीम अहमद, और जीशान व सखावत अली भी मामूली मजदूरी जैसा काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर है जिन्हें पुलिस ने आंतवादी बनाकर पेश किया है।

इस पूरे मामले पर जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी का आरोप है कि मुसलमानों को परेशान करने की एक अलिखित पॉलिसी सी बनी हुई है. उन्हें बिना सुबूत के उठा लिया जाता है, फिर उन्हें न्याय मिलने में 15-20 साल लग जाते हैं. रिहाई के बाद ऐसे लोगों की कहानी कोई नहीं दिखाता.

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