शाहनवाज़ हुसैन साहब दिलीप कुमार पर नाम बदलने के लिए कोई मज़हबी या सियासी दबाव नहीं था

0

अमिताभ श्रीवास्तव

दिलीप कुमार की पहली फिल्म ज्वार भाटा 1944 में आई थी। बांबे टाकीज़ के बैनर तले। जिसकी मालकिन थीं देविका रानी।

हिमांशु राय की मौत के बाद जब बांबे टाकीज़ दो टुकड़ों में बंटा और स्टूडियो के लिए बतौर हीरो काम करने वाले अशोक कुमार बांबे टाकीज छोड़कर फिल्मिस्तान चले गये तो देविका रानी को अपनी कंपनी के लिए हीरो ढूंढने की फिक्र सताने लगी। ऐसे में एक दिन यूसुफ खान नाम के एक नौजवान से उनकी मुलाकात हुई। बात आगे बढ़ी। चेहरा मोहरा कद काठी तो देविका रानी को पसंद आ गये लेकिन नाम नहीं जंचा। यूसुफ खान अपना नाम बदलने के हक में नहीं थे लेकिन अपने कड़क पठान पिता से फिल्मों में काम करने की बात छुपाने के लिए (क्योंकि वो इसे भांडों का पेशा मानते थे) अपनी पहचान छुपाने की जरूरत की वजह से मान गये।

कंपनी में काम कर रहे गीतकार और लेखक पंडित नरेंद्र शर्मा ने तीन नाम सुझाये- वासुदेव, जहांगीर और दिलीप कुमार। यूसुफ को जहांगीर नाम पसंद आया लेकिन उसी कंपनी में काम कर रहे मशहूर हिंदी साहित्यकार भगवती चरण वर्मा ने दिलीप कुमार नाम चुना। देविका रानी ने इस पर मुहर लगा दी। और इस तरह यूसुफ खान दिलीप कुमार बन गये।

सवाल यह कि ये किस्सा इस वक्त क्यों।

वो इसलिए कि टीवी समाचारों में शाहरुख खान प्रकरण के सिलसिले में बीजेपी नेता शाहनवाज़ हुसैन को कहते सुना कि दिलीप कुमार यानी यूसुफ खान को कांग्रेस के राज में डर की वजह से अपना नाम बदलना पड़ा था।

अव्वल तो 1944 में कांग्रेस की नहीं अंग्रेज़ों की हुकूमत थी। दोयम- दिलीप कुमार पर नाम बदलने के लिए कोई मज़हबी या सियासी दबाव नहीं था।
झूठ बोलने और गलत जानकारियां देने की हरकत छुटभैये नेता करें तो नजरअंदाज किया जा सकता है। लेकिन जब शाहनवाज़ हुसैन जैसे सीनियर नेता लोग टीवी कैमरों के आगे गलतबयानी करते हैं और एक खास तरह के संदर्भ में राय बनाने या बिगाड़ने का काम करते हैं जाने अनजाने तो बहुत अफसोस होता है।

बात यूं कुछ भी नहीं है लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में जब गलत सलत झूठी सूचनाओं को प्रामाणिक बना कर पेश किया जा रहा हो एक बेहद संवेदनशील माहौल में, तब खयाल रखा जाना चाहिए।

अमिताभ श्रीवास्तव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं!

Previous articleSetback for PMO, Moody’s says it stands by its assessment on religious intolerance
Next articleIn Geneva, India expresses concern over Nepal’s lack of political progress