प्रीति महावर, लुधियाना
अच्छे दिन के सपने दिखाने वाली केंद्र सरकार नीति आयोग को सही रूप से
संचालित करने में विफल रही है। अंग्रेजों के ज़माने का भूमि अधिग्रहण बिल
2013 में सर्वसम्मति से बीजेपी की सुमित्रा महाजन की अध्यक्षता में
कांग्रेस की सरकार द्वारा पारित किया गया। फिर ऐसी क्या बात हुई की सरकार
को दोबारा उसके मेजर प्वाइंट्स में संशोधन करने की ज़रूरत महसूस होने लगी।
एक तरफ जहाँ इस बिल को लेकर बवाल मच रहा है वहीँ जिस घोटालेबाज पर FEMA
(फेमा), PMLA (पीएमएलए), ED (एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट) की जांच चल रही
है, जो प्रत्यक्ष रूप से ७००-८०० करोड़ और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों करोड़
रुपयों का आईपीएल घोटाला कर चुका है, उस ललित मोदी की सहायता करने वाली
बीजेपी लीडर सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे के क्रिमिनल ऑफेंस ने भारत की
नाक पुरे विश्व में कटवा दी है। इसके बावजूद केंद्र सरकार इनका बीच-बचाव
करती नहीं थक रही।
अपने ओहदे का गलत फायदा उठा सुषमा ने बिना वित्त मंत्रालय और कानून
मंत्रालय से परामर्श लिए ब्रिटिश हाई कमिश्नर से ललित को ब्रिटेन का
वीजा तथा पासपोर्ट देने की सिफारिश की। इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष होते
हुए भी वसुंधरा राजे ने सम्बंधित ब्रिटिश औथौरिटी से ललित को ट्रेवल
डाक्यूमेंट्स देने की सिफारिश की। इससे न सिर्फ भारत सरकार का विश्वास
बहारी मुल्कों में टुटा है बल्कि विदेशी ताकतें फिर से सर उठाने लगेंगी।
इसके साथ ही वो अपनी बातें मनवाने के लिए अपने मनपसंद उम्मीदवार को खड़ा
करवाएंगी. जो भारत की संप्रभुता पर एक बड़ा हमला है।
इस देश में आधार, सेंट्रल मोनिटरिंग सिस्टम, नेत्रा, NATGRID (नैटग्रिड)
जैसी सेवाएं बिना किसी कानून और संसदीय देख-रेख के चल रही हैं। यहाँ
साइबर सिक्यूरिटी, प्राइवेसी प्रोटेक्शन, साइबर लॉ, ई-गवर्नेंस,
ई-कॉमर्स, डाटा प्रोटेक्शन, आज भी बेकार नियमों के अधीन हैं। जहाँ नेशनल
साइबर सिक्यूरिटी पॉलिसी 2013 आज तक अपनाया नहीं गया, वहां सरकार जनता को
डिजिटल इंडिया को 2019 तक भारत के कोने-कोने तक पहुचाने का सपना दिखा रही
है। भारत में जहाँ सालों से इंटेलिजेंस ब्यूरो और सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़
इन्वेस्टीगेशन जैसी इंटेलिजेंस एजेंसीज स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं
वहीँ आज भी इन्हें पारदर्शी बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे।
केंद्र का राज्य सरकारों पर कमज़ोर प्रभाव भी नीतियों की विफलता का बड़ा
कारण बन कर सामने आ रहा है। व्यापम घोटाले पर केंद्र सरकार अपने नेताओं
का पक्ष लेते नज़र आ रही हैं, वहीं जिन राज्यों में उनकी सरकार नहीं है
उनका विरोध कर अपनी ही किरकिरी करवा रही हैं। केंद्र सरकार के प्रमुख ने
जनता के हाथ में झाड़ू तो थमा दिया और खुद हवाई जहाज़ में यात्रा करने चल
पड़े। जहाँ सोच वहां शौचालय जैसी विचारधारा वालों को पता होना चाहिए की
सोच को शौचालय बनाना उचित नहीं है। इतना कुछ देख सुन कर तो यही कहा जा
सकता है की सोच पर शौचालय उनकी नीतियों में साफ़ तौर पर झलक रहा है।
ऐसा ज़रूरी नहीं है की वर्त्तमान सरकार की तुलना पिछली सरकारों से हो।
भारत का हर नागरिक यही चाहता है की उसके द्वारा चुनी गई सरकार उसे, उसके
परिवार तथा समाज के विकास के लिए दिल खोल कर कार्य करे उन्हें अच्छे दिन
दिखाए, तभी भारत का विकासशील से विकसित राष्ट्र बनाने का सपना साकार
होगा।
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