“बुरहान वानी क्या वाकई मौके का हक़दार था? क्या वाकई उसे मौत के घाट उतारने से पहले बात करनी चाहिए थी, जैसे जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती दावा कर रही हैं?
“जो लोग सत्ता की सुविधावादी राजनीति को राष्ट्रवाद का नाम देते हैं, वो असल राष्ट्रवाद को बदनाम कर रहे हैं”
तो ये तुम्हारा राष्ट्रवाद है? बेबस ! निरीह ! सत्ता पे आसीन राजनीतिक पार्टी पे निर्भर। तुम्हारा राष्ट्रवाद भी हर उस प्रोडक्ट के विज्ञापन की तरह है जहाँ बड़े बड़े दावे किये जाते हैं, फिर हलके से, बिलकुल महीन अक्षरों मे लिख दिया जाता है “शर्तें लागू”। क्या हुआ तुम्हारे खून के उबाल को? बुरहान वानी क्या वाकई मौके का हक़दार था? क्या वाकई उसे मौत के घाट उतारने से पहले बात करनी चाहिए थी, जैसे जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती दावा कर रही हैं?
क्या वो कश्मीर और बाकी देश में इस्लामिक राज नहीं चाहता था, जिसका दावा तुम कर रहे थे? फिर क्यों महबूबा के बयान पे तुम्हारी बोलती बंद है? तुम्हारा राष्ट्रवाद तब अठखेलियाँ करता है जब प्रशांत भूषण कश्मीर पे विवादित बयान देते हैं। उनकी पिटाई करने पहुँच जाते हो और उस कृत्य को तमगे की तरह पहनते हो! अगर केजरीवाल मुस्लिम टोपी पहन ले या दिग्विजय सिंह ओसामा को ओसमाजी कह दे तो खून खौलता है। मगर सत्ता में किसी भी कीमत पर बने रहने की “कायरता” को लेकर तुम दूसरी तरफ मुंह मोड़ लेते हो। अवसरवाद तुम्हें बर्दाश्त है, क्योंकि तुम्हारा खुद का वजूद उसपे निर्भर है।
“केजरीवाल मुस्लिम टोपी पहन ले तो तुम्हारा खून खौलता है।”
मुझे इन देश भक्त पत्रकारों की जुबां से इस अवसरवाद को लेकर एक शब्द नहीं सुनाई पड़ रहा है। कल्पना कीजिये अगर राहुल गाँधी, केजरीवाल या किसी “देशद्रोही” पत्रकार ने बुरहान वानी को एक और मौका दिए जाने की बात कही होती। सिर्फ कल्पना कीजिये। फिर देखना था आपको बीजेपी के प्रवक्ताओं के चेहरे का नूर, मेरी बिरादरी के सुविधावादी पत्रकारों की दहाड़। मजाल है कोई बच पाता इनसे? अभी दो दिन हुए हैं जब सुविधावादी राष्ट्रवादी पत्रकार ने देशद्रोही पत्रकारों और विशेषज्ञों को सार्वजनिक तौर पे निशाना बनाये जाने की बात की थी। वकालत की थी के सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। कहा था न? अब महबूबा मुफ़्ती के बयान पे इनकी खामोशी ग़ज़ब है। लोगों को एक खास वर्ग के प्रति भड़काना तुम्हारे लिए देशभक्ति होगी, मेरे लिए सिर्फ अराजकता है।
मैं व्यक्तिगत तौर पे मानता हूँ के महबूबा एक मुश्किल राज्य की मुख्यमंत्री हैं। वो ऐसा इसलिए भी कह रही हैं क्योंकि वो चाहती हैं के हालात काबू में आयें। शायद उनका ऐसा कहना व्यावहारिक भी है। इसे मैं देश भक्ति या फिर सियासत के पैमाने पे नहीं तोलना चाहूँगा। ऊपर से इस बार पेलेट गन्स से घायल बच्चों की तस्वीरों भी इस खबर का मार्मिक पहलू हैं। इन राष्ट्रवादियों ने पेलेट गन्स के प्रयोग को सही ठहराया है। मगर महबूबा मुफ़्ती के बयान पे खामोशी?
“तुम्हारा राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद न होकर अवसरवाद है।”
जो लोग JNU में देश की बरबादी तक जंग छेड़ने के नारे लगा गए, उन्हें अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया। तुमने कन्हैया को सूली पे चढ़ा दिया, उसके और उमर खालिद के बहाने एक पूरे संस्थान को बदनाम करने की कोई कसर नहीं छोड़ी, मगर नारे लगाने वालों में से एक भी शख्स क्यों नहीं पकड़ा गया, अपनी सरकार से तुम एक भी सवाल नहीं करते हो। डी रजा की बेटी के खिलाफ लोगों को भड़काने का काम एक सांसद ने किया, बगैर किसी सुबूत के। ये एक ज़िम्मेदार शख्स का आचरण है?
(अभिसार शर्मा एक वरिष्ठ पत्रकार हैं )