आमिर खान विवाद और मोदी भक्तों का मानसिक दिवालियापन

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इरशाद अली 

अब आपको यक़ीन करना ही होगा कि देश में कहीं भी असहिष्णुता और कट्टरता वाला माहौल नहीं है, चारों तरफ शान्ति पसरी हुई है। क्योंकि यक़ीन करने के अलावा आपके पास कोई विकल्प नहीं बचता क्यूंकि डंडे के जोर पर अपनी बात मनवाना भी हमें आता है।

देश में बढ़ती हुई असहिष्णुता का इससे बड़ा और कोई सबूत नहीं कि अब भक्तों के रूप में जो एक अंधी फौज तैयार हो चुकी है वो सिर्फ अपनी बात मनवाने पर यक़ीन रखती है अब इसके लिये चाहे कुछ भी करना पड़े। इतना सब होने पर असहिष्णुता के मुद्दे पर पीएम मोदी हमेशा की तरह ना सिर्फ चुप दिखाई देते है बल्कि उनकी तरह से मानसिक तौर पर दिवालिया हो चुके लोगोें को अनचाहे ये संदेश भी जाता है कि जो चल रहा है वो सही है।

देश की वर्तमान राजनीति का स्वरूप ये मानकर चल रहा है कि आजादी की परिभाषा का मतलब अब उनके संविधान के अनुरूप होना चाहिए। वर्ना पूर्ण रूप से मिले बहुमत का क्या फायदा अगर अपनी भी ना चला सके।

आमिर खान के पूरे वक्तव्य को ना सिर्फ गलत ढंग से परिभाषित किया गया बल्कि बाॅलीवुड में स्थापित सरकार के कारिन्दों ने इस बात के गलत मतलब को उछालकर अपनी प्रतिष्ठा को धुमिल किया। इसमें चाहे अनुपम खैर हो या परेश रावल या दूसरे दीगर फिल्मकार, जबकि दूसरी तरफ आमिर खान के पक्ष में कई फिल्मकार खड़े दिखाई दिए।

बस इसी बात से मौजूदा सरकार की मंशा जाहिर हो जाती है कि जिस बालीवुड में आजतक धर्म की गन्दी राजनीति के छीटें भी नहीं पड़े थे वहां आज दो गिरोह दिखाई देते है। पीएम मोदी और उनकी पार्टी की सोच की चीजों को सिर्फ हिन्दू और मुसलमान के नजरिये से देखना अब अपने चरम पर है जो देश की अखण्डता के लिये बहुत बड़ा खतरा है।

मोदी भक्तों की दलील तो सुनिए। अगर आपने मोदी की तारीफ़ करदी तो आपसे बड़ा देश भक्त शायद दुनिया में ना मिले। लेकिन मोदी की निंदा तो छोड़िये, अगर आपने सिर्फ यह कह दिया कि देश में असहिष्णुता का माहौल है तो भक्तों की टोली फ़ौरन इसे मोदी की निंदा मान लेती है । मानों 2015 के भारत की परिभाषा में मोदी का मतलब देश है और भाजपा का मतलब भारत है।

भला इस से बड़ी दिमाग़ी दिवालियापन की मिसाल और क्या होगी । आमिर खान ने यह क्या कह दिया कि उनकी पत्नी देश में बढ़ती असहिष्णुता पर चिंतित थी, फॅारन उन्हें याद दिलाया गया कि वह ‘मुसलमान होने के बावजूद इस देश में इतने बड़े अभिनेता बने हैं.’ मानो आमिर खान के अभिनेता बनने में सबसे बड़ा योगदान मोदी भक्तों का था और एक मुसलमान को अभिनेता बनाकर भक्तों ने उनपर बहुत बड़ा उपकार किया है और कामयाबी के मुकाबले में भक्तो के दुलारे अनुपम खेर, अशोक पंडित और परेश रावल यदि आमिर के आस पास भी नहीं भटक सके तो इसमें मुसलमानो की कोई साज़िश थी या फिर भक्तो की अपनी बड़ी नाकामी। यहां यह लिखने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ भक्तों के मानसिक खोखलेपन को ज़ाहिर करना है। वरना जैसा कि आमिर ने बुधवार को अपने खुले खत में कहा मुझे भी अपने भारतीय होने पर इन फ़र्ज़ी देशभक्तों से ज़्यादा गर्व है।

एक ही देश को दो विचारों के साथ जीने के नजरिये को पेश करने वाली सरकार और उसके पैरोकार रोटी रोजी, रोजगार, विकास जैसे गभ्भीर मुद्दो से परे जाकर अगर इसी को अपना लक्ष्य मानते है तो हम उम्मीद करेगें कि आने वाले दिनों में पीएम मोदी और नुमाइन्दों की और भी कारस्तानियां हमें देखने को मिलेगी।

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