राज्यसभा का गत वर्ष 15 दिसंबर से शुरू हुआ शीतकालीन सत्र आज (शुक्रवार) अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। इसके चलते में तीन तलाक बिल लटक गया है। संसद के शीतकालीन सत्र में तीन तलाक संबंधी विधेयक के लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में लंबित रह जाने के कारण अब सरकार के पास इसे कानूनी जामा देने के लिए बहुत सीमित विकल्प रह गये हैं।भारी हंगामे के बीच लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई। शुक्रवार (5 जनवरी) को चालू सत्र का आखिरी दिन था। इस विधेयक के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर राज्यसभा के पूर्व महासचिव वी के अग्निहोत्री ने न्यूज एजेंसी भाषा को बताया कि सरकार के पास एक विकल्प है कि वह अध्यादेश जारी कर दे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा करना उच्च सदन के प्रति असम्मान होगा।
बता दें कि एक बार में तीन तलाक को फौजदारी अपराध बनाने के प्रावधान वाले मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक को शीतकालीन सत्र में लोकसभा पारित कर चुकी है। किन्तु राज्यसभा में विपक्ष द्वारा इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग पर अड़ जाने के कारण इसे पारित नहीं किया जा सका। हालांकि सरकार ने उच्च सदन में इसे चर्चा के लिए रख दिया है और यह फिलहाल उच्च सदन की संपत्ति है।
इस विधेयक के बारे में पूछे जाने पर अग्निहोत्री ने कहा कि आम तौर पर अध्यादेश तब जारी किया जाता है जब सत्र न चल रहा हो और इसे सदन में पेश न किया गया हो। उन्होंने कहा कि जब सदन में विधेयक पेश कर दिया गया हो तो इस पर अध्यादेश लाना सदन के प्रति सम्मान नही समझाा जाता। किंतु पूर्व में कुछ ऐसे उदाहरण रहे हैं कि सदन में विधेयक होने के बावजूद अध्यादेश जारी किया गया।
अग्निहोत्री ने कहा कि सरकार इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भी भेज सकती थी। ऐसे भी उदाहरण हैं कि प्रवर समिति ने एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे दी। वैसे भी यह केवल छह-सात उपबंध वाला विधेयक है। उन्होंने कहा कि सरकार के पास यह विकल्प भी था कि विपक्ष जो कह रहा है उसके आधार पर वह स्वयं ही संशोधन ले आती।
अग्निहोत्री ने बताया कि चूंकि यह विधेयक सरकार राज्यसभा में रख चुकी है और जब तक उच्च सदन इसे खारिज नहीं कर देती, सरकार इस पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाकर इसे पारित नहीं करा सकती। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और राज्यसभा में कांग्रेस सदस्य विवेक तनखा भी मानते हैं कि इस बारे में अध्यादेश लाने के लिए कानूनी तौर पर सरकार के लिए कोई मनाही नहीं है। हालांकि परंपरा यही रही है कि संसद में लंबित विधेयक पर अध्यादेश नहीं लाया जाता।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि सरकार इस विधेयक को इसलिए पारित कराना चाहती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस बारे में छह महीने के भीतर संसद में कानून बनाया जाए। इस बारे में तनखा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने छह माह के भीतर कानून बनाने का जो आदेश दिया था, वह अल्पमत का दृष्टिकोण है। इस बारे में बहुमत वाले दृष्टिकोण में इसका कोई जिक्र नहीं है।
तनखा ने भाषा से कहा कि कांग्रेस का मानना है कि इस मामले में जल्दबाजी दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तीन तलाक पर जो रोक लगाई है, वह स्वयं अपने में एक कानून बन चुका है। न्यायाधीश का फैसला अपने आप में एक कानून है। विधायिका तो केवल उसे संहिताबद्ध करता है।
उन्होंने कहा कि झगड़ा फैसले को लेकर नहीं बल्कि सरकार द्वारा इस विधेयक में जो अतिरिक्त बातें जोड़ी गयी हैं, उसको लेकर है। उन्होंने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया, आप अपने राजनीतिक लाभ के लिए इसका तीन तलाक देने के आरोप का अपराधीकरण कर रहे हैं। विवाह के मामले फौजदारी अपराध नहीं हो सकते।
तनखा ने कहा कि सरकार ने जल्द पारित कराने के नाम पर इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की विपक्ष की मांग को नहीं माना। अब यह विधेयक संसद के अगले सत्र से पहले पारित नहीं हो सकता। यदि प्रवर समिति वाली बात मान ली जाती तब भी इस विधेयक को अगले सत्र में ही पारित होना था।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में एक बार में तीन तलाक या तलाक ए बिद्दत को गैर कानूनी घोषित करते हुए सरकार से इसे रोकने के लिए कानून बनाने को कहा है। शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त 2017 को पांच जजों की संवैधानिक पीठ में से तीन जजों ने तलाक-ए बिद्दत यानी तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
इसके बाद केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक- 2017 को लोकसभा में पेश किया और इसे बिना संशोधन के पास भी करवा लिया गया। फिलहाल मोदी सरकार इस कानून को राज्यसभा में भी पास करवाकर कानूनी जामा पहनाने के लिए जद्दोजहद कर रही है।