VIDEO: नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार बोले, 70 साल में सबसे खराब स्थिति में है भारतीय अर्थव्यवस्था

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नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने गुरुवार को कहा कि सरकार को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की आशंकाओं को दूर किया जा सके और वे निवेश के लिए प्रोत्साहित हों। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब देश की अर्थव्यवस्था पिछले पांच साल के दौरान वृद्धि की सबसे खराब गति को निहार रही है।

फाइल फोटो

उन्होंने वित्तीय क्षेत्र में बने अप्रत्याशित दबाव से निपटने के लिए लीक से हटकर कदम उठाने पर जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि निजी निवेश तेजी से बढ़ने से भारत को मध्यम आय के दायरे से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। राजीव कुमार ने वित्तीय क्षेत्र में दबाव को अप्रत्याशित बताया। उन्होंने कहा कि किसी ने भी पिछले 70 साल में ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया जब पूरी वित्तीय प्रणाली में जोखिम है। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की आशंकाओं को दूर किया जा सके और वे निवेश के लिये प्रोत्साहित हों।’’

समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘कोई भी किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है… निजी क्षेत्र के भीतर कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं है, हर कोई नकदी लेकर बैठा है… आपको लीक से हटकर कुछ कदम उठाने की जरूरत है। इस बारे में विस्तार से बताते हुए कुमार ने कहा कि वित्तीय क्षेत्र में दबाव से निपटने और आर्थिक वृद्धि को गति के लिये केंद्रीय बजट में कुछ कदमों की घोषणा पहले ही की जा चुकी है। वित्त वर्ष 2018-19 में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रही जो 5 साल का न्यूनतम स्तर है।

वित्तीय क्षेत्र में दबाव से अर्थव्यवस्था में नरमी के बारे में बताते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि पूरी स्थिति 2009-14 के दौरान बिना सोचे-समझे दिए गए कर्ज का नतीजा है। इससे 2014 के बाद गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढ़ी है। उन्होंने कहा कि फंसे कर्ज में वृद्धि से बैंकों की नया कर्ज देने की क्षमता कम हुई है। इस कमी की भरपाई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने की। इनके कर्ज में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। एनबीएफसी कर्ज में इतनी वृद्धि का प्रबंधन नहीं कर सकती और इससे कुछ बड़ी इकाइयों में भुगतान असफलता की स्थिति उत्पन्न हुई। अंतत: इससे अर्थव्यवस्था में नरमी आई।

कुमार ने कहा, ‘‘नोटबंदी और माल एवं सेवा कर तथा ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता के कारण खेल की पूरी प्रकृति बदल गयी। पहले 35 प्रतिशत नकदी घूम रही थी, यह अब बहुत कम हो गयी है। इन सब कारणों से एक जटिल स्थिति बन गयी है। इसका कोई आसान उत्तर नहीं है।’’ सरकार और उसके विभागों द्वारा विभिन्न सेवाओं के लिये भुगतान में देरी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह भी सुस्ती की एक वजह हो सकती है। प्रशासन प्रक्रिया को तेज करने के लिये हर संभव प्रयास कर रहा है।

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