बाबा रामदेव का सपना कि सरकारी स्कूलों में वैदिक संस्कृति और योग की शिक्षा को अनिवार्य कर देना चाहिए अब कमजोर वकीलों के चलते टूटता नज़र आ रहा है।
वकील योग की शिक्षा को स्कूलों में अनिवार्य करने के तर्क को जज साहब के सामने प्रस्तुत ही नहीं कर सके बल्कि योग की बुनयादी जानकारी से भी वंचित नज़र आए। आपको बता दे कि ये सवाल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, जस्टिस टीएस ठाकुर ने पूछे। सवाल उस वकील से थे जो स्कूलों में योग की शिक्षा को अनिवार्य बनाने की मांग कर रहे थे लेकिन अपनी कमजोर तैयारी चलते वकील साब ने बाबा रामदेव के सपने को चकनाचूर कर दिया।

स्कूलों में योग शिक्षा को अनिवार्य बनाने वाले एक वकील की उस समय जुबान लड़खड़ा गई जब उच्चतम न्यायालय ने योग के बारे में उनकी जानकारी के संबंध में सवाल पूछे।
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘योग में अंतिम आसन कौन सा होता है।’’ जब वकील की जुबान लड़खड़ाई तो पीठ ने कहा, ‘‘यह शवासन होता है। आप योग के हित की बात कर रहे हैं जबकि आपको इस बारे में जानकारी नहीं है।’’
पीठ ने उनसे अपनी याचिका वापस लेने को कहा जिसमें योग को देशभर में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए अनिवार्य करने की मांग की गई थी। पीठ ने उन्हें निर्देश दिया कि इसी तरह के लंबित मामले में एक पक्ष के रूप में हस्तक्षेप किया जाए।
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील एम. एन. कृष्णमणि से चीफ जस्टिस ने पूछा आपने आखिरी बार योग कब किया था। कृष्णमणि की तरफ से जवाब न आने पर चीफ जस्टिस ने चुटकी लेते हुए कहा, लगता है आप सिर्फ शवासन करते हैं। गौरतलब है कि शवासन एक ऐसा आसन है जिसमें शव की मुद्रा में लेट कर शरीर और दिमाग को आराम दिया जाता है।