भारत के असम में गैरकानूनी तरीके से रह रहे सात रोहिंग्या प्रवासियों को आज यानी गुरुवार (4 अक्टूबर) को म्यांमार वापस भेजेगा। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पहली बार ऐसा कदम उठा रही है। रोहिंग्या प्रवासियों को वापस म्यांमार भेजने के सरकार के फैसले में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकार कर दिया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया।

दरअसल, सात रोहिंग्या प्रवासियों को वापस म्यांमार भेजने के सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक याचिका दी गई थी जिसमें इस मामले पर तत्काल सुनवाई की कोर्ट से अपील की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (4 अक्टूबर) को साफ तौर पर इस मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “म्यांमार ने यह स्वीकार कर लिया है कि रोहिंग्या उनके देश के नागिरक हैं। साथ ही उन्हें वापस बुलाने पर भी सहमत हो गए हैं। इसलिए इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।” शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब हर हाल में रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस जाना होगा।
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत याचिका दाखिल की थी। प्रशांत भूषण ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट को रोहिंग्याओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। इसपर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हमें अपनी जिम्मेदारी पता है और किसी को इसे याद दिलाने की जरूरत नहीं है।
भारत ने वापस भेजने का किया फैसला
आपको बता दें कि भारत असम में गैरकानूनी तरीके से रह रहे सात रोहिंग्या प्रवासियों को गुरुवार को म्यांमार वापस भेजेगा। अधिकारियों ने बताया कि ऐसा पहली बार है जब भारत से रोहिंग्या प्रवासियों को म्यामांर वापस भेजा जा रहा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसपर अपनी आपत्ति जताई है। नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने कहा है कि अगर भारत ऐसा करता है तो यह उसके अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्व से मुकरने जैसा होगा।
गृह मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि मणिपुर स्थित मोरेह सीमा चौकी पर सात रोहिंग्या प्रवासियों को गुरुवार को म्यांमार के अधिकारियों को सौंपा जाएगा। ये अवैध प्रवासी वर्ष 2012 में पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद से ही असम के सिलचर स्थित हिरासत केंद्र में रह रहे हैं। अधिकारी ने बताया कि म्यांमार राजनियकों को काउंसलर पहुंच प्रदान की गई थी, जिन्होंने प्रवासियों की पहचान की।
14,000 से अधिक भारत में रहते हैं रोहिंग्या
अन्य अधिकारी ने बताया कि पड़ोसी देश की सरकार के गैरकानूनी प्रवासियों के पते की रखाइन राज्य में पुष्टि करने के बाद इनकी म्यांमार नागरिकता की पुष्टि हुई है। भारत सरकार ने पिछले साल संसद को बताया था कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर में पंजीकृत 14,000 से अधिक रोहिंग्या लोग भारत में रहते हैं। हालांकि मदद प्रदान करने वाली एजेंसियों ने देश में रहने वाले रोहिंग्या लोगों की संख्या करीब 40,000 बताई है।
रखाइन राज्य में म्यांमार सेना के कथित अभियान के बाद रोहिंग्या लोग अपनी जान बचाने के लिए अपने घर छोड़कर भागे थे। संयुक्त राष्ट्र रोहिंग्या समुदाय को सबसे अधिक दमित अल्पसंख्यक बताता है। मानवाधिकार समूह ‘एमनेस्टी इंटरनैशनल’ ने रोहिंग्या लोगों की दुर्दशा लिए आंग सान सू ची और उनकी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।