चेयरमैन पद से साइरस मिस्त्री की विदाई चर्चा का विषय बनी हुई है। टाटा ग्रुप ने साइरस मिस्त्री हटाए जाने के कारणों का खुलासा अभी तक साफ तौर पर नहीं किया है, लेकिन साइरस के कम्पनी हित में लिए गए पूर्व के निर्णयों पर बोर्ड उनसे खासा नाराज चल रहा था।
अंग्रेजी न्यूज चैनल एनडीटीवी की खबर के अनुसार मिस्त्री रतन टाटा को किनारे लगाना चाहते थे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वे कंपनी के कुछ खास प्रोजेक्ट्स को भी बेचना चाहते थे। इसी विवाद को लेकर टाटा और मिस्त्री के बीच गंभीर मतभेद खड़े हो गए थे। जबकि बताया गया है कि मिस्त्री को हटाने का विचार पहले ही तैयार किया जा चुका था।
रतन टाटा और बोर्ड को साइरस मिस्त्री के कई फैसलों पर कड़ी आपत्ति थी। जिनमें टाटा स्टील के ब्रिटेन स्थित प्लांट को बेचने का फैसला गलत बताया जा रहा है जबकि रतन टाटा ने खुद इस यूनिट के लिए बातचीत की थी। इसके अलावा मिस्त्री जेएलआर-जगुआर लैंड रोवर में भी नया निवेश लाने में नाकाम साबित हो रहे थे और शिकागो में कंपनी की होटल बेचने के फैसले ने भी मिस्त्री की साख को रतन टाटा और बोर्ड के सामने कमजोर किया था।
जनसत्ता की खबर के अनुसार जापानी टेलीकॉम कंपनी एनटीटी डोकोमो से कानूनी लड़ाई हारने ने मिस्त्री के बचे-खुचे अवसर भी खत्म कर दिए। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने टाटा को 1.17 बिलियन डॉलर रुपये डोकोमो को चुकाने को कहा था। जबकि कम्पनी में ये चर्चा भी ज़ोरो पर थी कि मिस्त्री व्यक्तिगत रूप से टाटा को निशाना बनाने की तलाश में थे।
माना जा रहा है कि रतन टाटा ने ब्रिटेन में कम्पनी को लेकर जो साख स्थापित की थी उसमें तेजी से गिरावट आई थी। कम्पनी की और से टाटा संस के प्रवक्ता ने बताया, ”बोर्ड ने सामूहिक बुद्धिमत्ता और प्रधान शेयरहोल्डर्स के सुझावों के आधार पर टाटा संस और टाटा ग्रुप के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखते हुए बदलाव का फैसला किया है।”
जबकि इससे पहले रतन टाटा ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चिट्ठी भी भेजी थी और इस फैसले के बाद कंपनी के कर्मचारियों को खत लिखकर कहा कि स्थायित्व लाने के लिए उठाए गए इस कदम को वे स्वीकार करते हैं।