क्योंकि असहिष्णुता भी, कभी सहिष्णुता थी

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निलेश पुरोहित

आज में कह सकता हूँ की देश के तमाम विपक्षी दल बेवजह सहिष्णुता-असहिष्णुता का बवाल मचाये हुए थे, हम यानी भारत में सहिष्णुता कूट कूट कर भारी हुई हैं,

बाजार में या किसी ऑनलाइन मार्केटप्लेस में आपको ऐसा कोई मीटर नहीं मिलेगा जो आपमें सहिष्णुता का लेवल माप सके, लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आप बिना किसी मीटर की मदद से भी स्वयं आत्मचिंतन करके जान सकते हैं कि हमारे अंदर कितनी सहिष्णुता हैं.

अगर आज आपको लगता हैं कि उतराखंड में बिना किसी दोष पिटाई खाकर टांग तुड़वाने वाले शक्तिमान घोड़े की असामयिक मौत कोई बड़ा इश्यू नहीं हैं तो आप एक सहिष्णु व्यक्ति हैं, मेरी नज़र में आपसे बड़ा सहनशील वह दिवंगत घोड़ा ही रहेगा जिसने अपनी इहलीला खोने के बाद भी किसी से शिकायत नहीं की.

वह अलग बात हैं कि उसके पास विरोध करने के लिए धरना देना, किसी को पीट देना, या देश विरोधी कहने का ऑप्शन नहीं था.

अगर आपको लगता हैं कि महाराष्ट्र, यूपी में रोजाना दूर दूर तक पैदल जाने वाले लोग अगर बीच रास्ते में चोटिल हो जाए या भगवान को प्यारे हो जाएँ और उसके लिए उसकी किस्मत को दोष दिया जाना चाहिए तो आप एक आम सहनशील भारतीय हैं.

आम तौर पर ऐसी परिस्थिति के खुद पर आन पड़ने पर हम मौजूदा सरकारों समेत देश के सभी नेताओं को कोसते हैं, अगर हम धन संपन्न होते हैं तो उसके उपयोग से संकट का कोई शोर्टकट समाधान ढूंढ कर इतिश्री कर लेते हैं.

देश के टॉप 10 किस्मत वाले शख्सियतों में से एक श्रीमान ललित मोदीजी, जिनपर देश के कानून व्यवस्था के साथ धोखा करके वित्तीय हेरफेर करने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं, वह व्यक्ति जिसपर प्रवर्तन निर्देशालय ने कई नोटिस जारी किये हैं, वही व्यक्ति एवं उसके संगठन के साथ मिलकर हम सिर्फ इसलिए क्रिकेट मैच का आयोजन करवा रहे हैं क्योंकि क्रिकेट इस देश में आज सर्वोपरि सा हो गया हैं.

कई सोशियल मीडिया बुद्धिजीवी यह तर्क दे सकते हैं कि अगर हम पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेल सकते हैं तो ललित मोदी के सहयोग से आईपीएल करवाने में कोई हर्ज नहीं हो सकता.

लेकिन लेकिन नैतिकता की नज़र में यह जनता और देश के संविधान के साथ एक तरह कि धोखेबाजी मानी जायेगी, और यह आपको निजी तौर पर मंज़ूर हैं तो आप देश के
बड़े सहिष्णुओं में से एक हैं.

आम तौर पर सहिष्णुता हमारे देश की आत्मा में बसती हैं, यह हमारे राष्ट्र का श्रृंगार हैं, लेकिन मुझे लगता हैं कि देश में चल रही अव्यवस्था, बेईमानी पर असहिष्णुता
जिस दिन व्यक्त होने लगेगी उसी दिन एवं क्षण से इनके विरुद्ध एक आंदोलन का जन्म होगा.

इसको समझने के लिए किसी रॉकेट साईंस को समझने कि ज़रूरत नहीं, अन्ना आंदोलन का जन्म भी देश में भ्रष्टाचार, घूसखोरी के प्रति जनता कि असहनशीलता के दम पर ही आगे बढ़ा था. इसमें मजे कि बात यह हैं कि वह असहनशीलता का जन्म कई वर्ष कि सहनशीलता के पृष्ठभूमि पर हुआ.

इसलिए आप समझ लीजिए कि टोलरेंस कहाँ हैं और कहाँ नहीं, कहाँ उसके फायदे हैं और कहाँ नहीं.

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