‘सेक्सी दुर्गा’ के प्रदर्शन को रोककर स्मृति ईरानी के मंत्रालय ने दिया ‘संस्कारी’ होने का सबूत

0

पूर्व टेलीविजन अदाकारा और BJP की मोदी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय देखने वाली स्मृति ईरानी के मंत्रालय ने खुद को जबरदस्त तौर पर संस्कारी होने का प्रमाण दिया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाने वाली सनल कुमार शशिधरन की फिल्म ‘सेक्सी दुर्गा’ के प्रर्दशन को कथित तौर पर रोक दिया है। इसके विरोध में फिल्मों को चयनित करने वाले निर्णायक मंडल के प्रमुख सुजाॅय घोष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि इस फिल्म को जूरी की सहमति के बाद ही प्रदर्शन के लिए चयनित किया गया था।

लेकिन मंत्रालय को यह बात अच्छी नहीं लगी और चयनित फिल्मों के प्रर्दशन वाली सूची से ‘सेक्सी दुर्गा’ का नाम हटा दिया गया। जूरी के सदस्यों ने इस बात पर ऐतराज जताया कि मंत्रालय ने बिना उन्हें बताए इस सूची में बदलाव कर दिया। जबकि इस मामले पर अभी तक मंत्रालय की और से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। मंत्रालय का यह अत्याचार सिर्फ ‘सेक्सी दुर्गा’ के साथ ही नहीं किया गया बल्कि रवि जाधव की फिल्म ‘न्यूड’ को भी इस लिस्ट से बाहर रखा गया है।

इस तरह का प्रयास रात के अंधेरे में गुप्त काम करने वाले लोगों की मंशा को जाहिर करता है जो सफेद उजाले में पाक-साफ ‘संस्कारी’ होने का नाटक दिखाते है। यह उसी मानसिकता का परिचय देती है। लगता है कि सरकार मान बैठी है कि यह ब्लू फिल्म के जैसा ही कुछ है। जबकि वह भूल बैठी है कि देश के सैंकड़ो सिनेमाघरों में ‘रेशमा की जवानी’, ‘कमसिन कली’ या ‘बाली उमर’ जैसी फिल्मे भी चलती है जिन्हें किसी को जबरदस्ती नहीं दिखाया जाता है। जिसकी मर्जी वो जाकर देख ले। सरकार उन्हें क्यों नहीं बंद करती? लेकिन मोदी सरकार जबरदस्ती आदेशों को थोपने का तानाशाही फरमान पिछले तीन सालों से लागू करती आ रही हैं।

नोटबंदी के बाद देश को आर्थिक रूप से कंगाल बनाने के बाद और GST से व्यापारियों का गला घोंटने के बाद गाय-गौमूत्र और गोबर को लेकर जिस तरह का ‘राष्ट्रवाद’ और ‘संस्कारी’ देश बनाने की पहल सरकार कर रही है उसके नतीजे सबके सामने है। इससे पूर्व इस फिल्म पर विवाद के कारण इसके नाम को भी बदल दिया गया था ‘सेक्सी दुर्गा’ को ‘एस दुर्गा’ कर दिया गया था।

सरकार के पास सृजनात्मक लोगों के नाम पर केवल अनुपम खेर, मधुर भंडारकर और गजेन्द्र चौहान जैसे लोगों के कुछ नाम ही मात्र है। सर्कीण मानसिकता वाली विचारधारा कभी भी ‘सेक्सी दुर्गा’ के अभिनव प्रयोग को नहीं समझ सकती है।

हमें हिन्दी फिल्मों के नाम पर वहीं भोंडापन चाहिए जिसमें कोई धर्मेन्द्र या मिथुन चक्रवर्ती 50 गुंडो को अकेले ही निबटा सके। अनुराग कश्यप, रवि जाधव या सनल कुमार शशिधरन को अभी इस प्रकार की फिल्मों को बनाने के लिए भारत में शायद 100 वर्ष और इंतजार करना पड़े।

जबकि ‘सेक्सी दुर्गा’ की कहानी एक युगल की कहानी है जो रात में एक कार में लिफ्ट लेते है और फिर उनके साथ एक अजीब घटनाक्रम पेश आता है। भारतीय सिनेमा के लिए इस तरह की फिल्में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाली बन सकती है लेकिन कहीं इस चक्कर में हम संस्कारी होने के ढोंग को दिखाने से न चूक जाए इसलिए ‘सेक्सी दुर्गा’ का प्रर्दशन रोकना बेहद जरूरी है।

इन सबसे अलग सुजाॅय घोष के साहस को सलाम करना चाहिए जिन्होंने बहुत बेबाकी के साथ मंत्रालय की इस संर्किणता के विरोध में अपना इस्तीफा दे दिया।

Previous articleHaryana govt orders media personnel to keep safe distance from CM Khattar
Next articleसुजॉय घोष के बाद अब ‘अलीगढ़’ के लेखक अपूर्व असरानी ने भी IFFI की जूरी से दिया इस्तीफा