उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार (16 सितंबर) को राज्य सरकार के 17 अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को अनुसूचित जाति (एससी) सूची में शामिल करने के फैसले पर रोक लगा दी है। इस आदेश के साथ ही कोर्ट ने राज्य के समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार सिंह ने व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने के निर्देश भी दिए हैं। अदालत का फैसला सामाजिक कार्यकर्ता गोरख प्रसाद की याचिका पर आया है।

इस मामले में कोर्ट में गोरख प्रसाद द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राजीव मिश्र की डिवीजन बेंच ने कहा योगी सरकार का फैसला पूरी तरह से गलत है। राज्य सरकार ऐसे मामलों में फैसला नहीं ले सकती है क्योंकि एससी-एसटी जातियों में बदलाव का अधिकार सिर्फ देश की संसद को ही है। कोर्ट ने कहा कि राज्य की सरकार किसी भी तरह इस तरह के आदेश जारी नहीं कर सकती है और 24 जून को जो आदेश जारी किया गया है, वह पूरी तरह से गलत है।
उत्तर प्रदेश की 12 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव से पहले समुदायों को लुभाने के उद्देश्य से राज्य सरकार का यह कदम इस साल जून में आया था। इस सूची में जिन जातियों को शामिल किया गया है वे हैं- निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआ, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुहा और गौड़, जो पहले अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) वर्ग का हिस्सा थे। इस कदम को योगी सरकार द्वारा इन सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ प्रदान करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा था।