विजयादशमी के अवसर पर कई आश्रमों से साधुओं ने शुगरल क्षेत्र के पास गंगा में एक पवित्र स्नान लेने से इनकार कर दिया। इस पर बोलते हुए कई साधुओं ने आरोप लगाया है कि कारखानों द्वारा फैलाएं जा रहे कचरे के निर्वहन के कारण नदी का पानी काला हो गया है।
उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (जानसठ) श्यावध चैहान ने कहा कि उन्होंने कार्रवाई शुरू करने के लिए प्रदूषित पानी के नमूने लेने के लिए कहा है। गंगा की सफाई मोदी सरकार की कई सारी महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक रही है जिसका वादा कर वह सत्ता तक पहुंचे है। लेकिन इस पर अभी तक ज़मीनी स्तर पर कुछ भी देखने को नहीं मिला है।
आपको बता दे कि पूर्व में नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल (NGT) ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए सवाल पूछा था कि सरकार कोई एक भी जगह बताए जहां गंगा नदी साफ है। अधिकरण ने कहा कि भारी-भरकम राशि खर्च करने के बावजूद हालात बद से बदतर कैसे हो गए हैं।
गंगा की निर्मलता और अविरल प्रवाह को लेकर एनजीटी ने कहा था, “हम मानते हैं कि वास्तविकता में लगभग कुछ भी नहीं हुआ है जबकि केंद्र और राज्य इतने सालों से केवल जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल रहे हैं और जमीन पर कुछ ठोस नहीं हुआ है।“
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि क्या आप हमें बताएंगे कि क्या यह सही है कि 5000 करोड़ रपए से ज्यादा गंगा को बद से बदतर बनाने पर खर्च हो गए। पीठ ने कहा कि गंगा नदी के 2500 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में से एक जगह ऐसी बताएं जहां गंगा की स्थिति में सुधार हुआ है।
इसके अलावा पूर्व में इस मामले में एक RTI के जवाब में अजीब ही खुलासा गंगा सफाई के मामले में उजागर हुआ। लाखों रूपये केवल सफाई किस प्रकार से की जाए इन मीटिंग्स पर ही कर दिए गए। RTI से जानकारी मिली थी कि इन बैठकों के लिए जिन स्थानों को चुना गया था उन्हें मंहगें फुलों से सजाया गया था मेहमानों के लिए।