पिछले दिनों राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) ने आम जनता से पाठ्य पुस्तकों में बदलाव से जुड़े सुझाव मांगे थे। इस पर स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) को अजीबोगरीब सुझाव भेजे हैं, जो हैरान करने वाले हैं।

न्यास अपने सुझाव में अंग्रेजी, उर्दू और अरबी के शब्द, पंजाबी के मशहूर क्रांतिकारी कवि पाश और उर्दू के मशहूर कवि मिर्जा गालिब की कविताएं, बांग्ला लेखक रविंद्रनाथ टैगोर का वैचारिक लेख, चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की आत्मकथा के अंश, मुगल बादशाहरों की रहमदिल का जिक्र, भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) को हिंदू पार्टी बताना, नेशनल कांफ्रेंस को ‘सेकुलर’ बताना, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सिख दंगे पर मांगी गई माफी और 2002 में हुए ‘गुजरात दंगे में करीब दो हजार लोग मारे गए थे’ जैसे वाक्य हटाने का सुझाव भेजे हैं।
जानकारों का कहना है कि प्रसिद्ध बांग्ला लेखक रविंद्रनाथ टैगोर के लेख को हटाने का सुझाव बीजेपी को भारी पड़ सकता है। क्योंकि पश्चिम बंगाल में इन दिनों बीजेपी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। बता दें कि दीनानाथ बत्रा शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रमुख हैं जो दो आरएसएस के शैक्षणिक शाखा विद्या भारती के प्रमुख रह चुके हैं। न्यास ने एनसीईआरटी को पांच पन्ने में अपने सुझाव भेजे हैं। दीनानाथ बत्रा के नेतृत्व में न्यास ने एनसीईआरटी को और कौन से सुझाव भेजे हैं ये आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
इस मामले में न्यास के सचिव और आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक अतुल कोठारी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इन किताबों में कई बातें आधारहीन और पक्षपातपूर्ण हैं। कोठारी ने कहा कि इसमें समुदाय को लोगों को अपमानित करने का प्रयास है। इसमें तुष्टिकरण भी है…आप बच्चों को दंगों के बारे में पढ़ाकर उन्हें कैसे प्रेरित करना चाहते हैं? शिवाजी, महाराणा प्रताप, विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस जैसे वीरों के लिए कोई जगह नहीं है।
कोठारी ने आगे बताया, ‘हमें ये चीजें आपत्तिजनक लगीं और हमने अपना सुझाव एनसीईआरटी को भेजा है। हमें आशा है कि ये सुझाव लागू होंगे।’ आपको बता दें कि दीनानाथ बत्रा के नेतृत्व में न्यास ने इससे पहले भी एके रामानुजन के लेख “तीन सौ रामायण: पांच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार” को दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम से हटाने के लिए कैंपेन चला चुका है।
इसके अलावा आरएसएस से जुड़े इस संगठन ने इतिहासकार वेंडी डोनिगर की किताब “द हिन्दू: एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री” को वापस लेने के लिए भी अभियान चला चुका है। न्यास के अभियान के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय ने रामानुजन का लेख पाठ्यक्रम से हटा दिया था, जबकि डोनिगर की किताब के प्रकाशन पेंगुइन को किताब को वापस लेना पड़ा था।