रेल बजट का आम बजट में विलय होने के बाद रेलवे को सरकारी खजाने में सालाना लाभांश नहीं देना होगा लेकिन कामकाज के मामले में उसे पूरी आजादी होगी. रेलवे को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल का बोझ खुद उठाना होगा. इसके साथ ही मौजूदा कर्मचारियों के वेतन और पूर्व कर्मचारियों की पेंशन का नियमित भुगतान भी उसे ही करना होगा.
वर्तमान में रेलवे का वेतन बिल करीब 70,125 करोड़ रुपये और पेंशन बिल 45,500 करोड़ रुपये है जबकि ईंधन पर आने वाला सालाना खर्च 23,000 करोड़ रुपये बैठता है. 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को अमल में लाने पर भी रेलवे को अतिरिक्त 30,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाना होगा जबकि यात्री सेवाओं पर विभिन्न प्रकार की सब्सिडी के रूप में भी उसे 33,000 करोड़ रुपये का वाषिर्क खर्च उठाना होगा.
बजट पेश करने के मामले में एक प्रमुख सुधार की दिशा में कदम उठाते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में रेल बजट का विलय आम बजट में करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई.
रेलवे को उसकी अनुमानित 2.27 लाख करोड़ रुपये की पूंजी पर सालाना लाभांश देना पड़ता है जो कि उसे बजट विलय के बाद नहीं देना पड़ेगा. इस पूंजी से तात्पर्य वह पूंजी है जो कि केन्द्र सरकार ने रेलवे के ऋण, पूंजी और विभिन्न संपत्ति खड़ी करने पर लगाई है.
दोनों बजट एक हो जाने के बाद रेलवे विनियोग भी मुख्य बजट से जुड़े विनियोग विधेयक का हिस्सा होगा.