सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राज्य विधान परिषद (MLC) की सदस्यता इस आधार पर रद्द करने की मांग की गई है कि उन्होंने अपने खिलाफ लंबित एक आपराधिक मामले से संबंधित जानकारी कथित तौर पर छिपाई।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर तथा न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सोमवार (23 अक्टूबर) को चुनाव आयोग से चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। यह जनहित याचिका अधिवक्ता एमएल शर्मा ने दाखिल की है।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने शर्मा से संशोधित याचिका की एक प्रति चुनाव आयोग को देने को कहा था। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जदयू नेता के खिलाफ एक आपराधिक मामला चल रहा है, जिसमें उन पर कांग्रेस के स्थानीय नेता सीताराम सिंह की हत्या और चार अन्य को घायल करने का आरोप है। यह मामला वर्ष 1991 में लोकसभा उप चुनाव का है।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि इस मामले में सीबीआई को नीतीश के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाए। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि जदयू नेता के खिलाफ एक आपराधिक मामला है। इसमें वह वर्ष 1991 के बाढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव से पहले स्थानीय कांग्रेस नेता सीताराम सिंह की हत्या और चार अन्य लोगों को घायल करने के मामले में आरोपी हैं।
अधिवक्ता ने चुनाव आयोग के वर्ष 2002 के आदेश के अनुसार कुमार की सदस्यता रद्द करने की मांग की है, जिसके अनुसार उम्मीदवारों को नामांकन पत्र के साथ हलफनामे में अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का ब्योरा भी देना पड़ता है। उन्होंने दावा किया कि बिहार के मुख्यमंत्री ने वर्ष 2012 को छोड़कर वर्ष 2004 के बाद कभी भी अपने खिलाफ लंबित मामले की जानकारी नहीं दी।