सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों (गरीब सवर्णों) को शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी ऐतिहासिक 124 वें संविधान संशोधन विधेयक 2019 पर बुधवार (9 जनवरी) देर रात संसद की मुहर लग गई। यह विधेयक संघीय ढांचे में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता, इसलिए इसे राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी की जरूरत नहीं है। राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही यह बिल कानून का रूप ले लेगा।

राज्यसभा में इस विधेयक पर लगभग आठ घंटे तक चली चर्चा के बाद इसे सात के मुकाबले 165 मतों से पारित कर दिया गया। बता दें कि लोकसभा इसे एक दिन पहले यानी मंगलवार को ही पारित कर चुकी है। सदन में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि इससे सभी उच्च जातियों और सभी धर्मों के गरीब लोगों को रोजगार और शिक्षा में लाभ मिलेगा।
सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और विपक्ष के लगभग सभी दलों ने विधेयक का समर्थन किया लेकिन द्रमुक, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का प्रस्ताव किया जिसे 18 के मुकाबले 155 मतों से खारिज कर दिया गया। इसके साथ इन दलों विधेयक में पेश किये संशोधन के प्रस्ताव भी खारिज कर दिये गये।
कांग्रेस के साथ ही समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने विधेयक का समर्थन किया जबकि अन्नाद्रमुक, राष्ट्रीय जनता दल और आम आदमी पार्टी ने इसका विरोध किया। चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि सरकार अच्छी मंशा से इस विधेयक को लाई है जिससे सामान्य वर्ग के लोगों को शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।
सूत्रों के मुताबिक, सरकार आरक्षण प्रावधानों को जल्दी से जल्दी अधिसूचित करेगी ताकि नई नौकरियों, प्रतियोगी परीक्षाओं में आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को आरक्षण दिया जा सके। जिनकी वार्षिक आय आठ लाख से कम है, पांच एकड़ से कम जमीन है, शहर में एक हजार वर्ग फीट से छोटा घर है, सौ गज से छोटा प्लाट है और गैर अधिसूचित क्षेत्र में 200 गज से छोटा प्लाट है, उन्हें इस कानून के तहत आरक्षण मिलेगा।