दिल्ली का संवैधानिक बॉस कौन? इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच में गुरुवार (2 नवंबर) को सुनवाई शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल को ही बॉस मानते हुए कहा कि संविधान में उपराज्यपाल, यानी LG का अधिकार सुनिश्चित है और पहली नजर में किसी भी अतिआवश्यक मामले में उन्हें वरीयता दी गई है।

पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य की केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार का पक्ष रखने के लिए केजरीवाल सरकार ने पूर्व गृह मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम समेत देश के नौ नामी वकीलों की टीम बनाई है। ये टीम पांच जजों की संविधान पीठ के सामने दिल्ली सरकार का पक्ष रखेगी।
बता दें कि चिदंबरम उन नेताओं में शामिल हैं, जिन पर केजरीवाल और उनके साथियों ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान भ्रष्टाचार के बेहद गंभीर आरोप लगाए थे। उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक मुखिया बताने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर रखी है।
अब दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की ओर से सरकार के अधिकारों के मामले में पी चिदंबरम पेश होंगे। उन्होंने NDTV से इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि, “मुझे नहीं लगता, संविधान में LG को सुप्रीम शक्ति बनाया गया है, और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार कतई शक्तिहीन इकाई है।”
इस मामले में दिल्ली सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि पूर्व गृहमंत्री के रूप में चिदंबरम खासतौर पर दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार के मामले में जानकार साबित होंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या मंत्री के रूप में चिदंबरम के कामकाज को लेकर अरविंद केजरीवाल के राजनैतिक रूप से किए हमले मामले को कुछ अजीब नहीं बना देंगे, इस पर प्रवक्ता ने कहा कि “वह (पी चिदंबरम) सच्चे प्रोफेशनल हैं।
चिदंबरम से मदद मांगे जाने को लेकर कांग्रेस नेताओं द्वारा दिल्ली सरकार पर कटाक्ष किया गया है। दिल्ली कांग्रेस की प्रवक्ता और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने एक ट्वीट में कहा है, “चिदंबरम जी को सबसे भ्रष्ट और जनविरोधी बताने के बाद बेशर्म आप उनकी सेवाएं हासिल करना चाहती है… क्या अरविंद केजरीवाल उन्हें केस के बारे में जानकारी देने गए थे…?”
After calling Mr.Chidambaram most corrupt & anti-people, shameless AAP wants 2 avail his services! Did @ArvindKejriwal go 2 brief him? pic.twitter.com/IUOLBEPi0C
— Sharmistha Mukherjee (@Sharmistha_GK) November 3, 2017
शर्मिष्ठा मुखर्जी के अलावा दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने भी चिदंबरम को बधाई देते हुए तीखा कटाक्ष किया है।
Congratulations! .@PChidambaram_IN -You have been exonerated by your one time critic @ArvindKejriwal and AAP!
Would AAP now apologise!? pic.twitter.com/cPU3MThrvj
— Ajay Maken (@ajaymaken) November 3, 2017
बता दें कि भ्रष्टाचार-विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर उस समय हमले किए थे, जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार सत्तारूढ़ थी, और उन्होंने चिदंबरम पर भी भ्रष्टाचार के गंभी आरोप लगाए थे।चिदंबरम के अलावा इंदिरा जयसिंह, गोपाल सुब्रमण्यम और राजीव धवन भी इस टीम में शामिल हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने NDTV से बातचीत में कहा कि, “यह बहुत अच्छी बात है कि वह (चिदंबरम) प्रस्तुत हो रहे हैं, और ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है…” उन्होंने बताया कि चिदंबरम पहले भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति जैसे संवैधानिक मामलों में केजरीवाल सरकार को सलाह दे चुके हैं।
गौरतलब है कि जनवरी 2014 में कथित ‘भ्रष्ट’ नेताओं की सूची तैयार करते हुए केजरीवाल ने दिल्ली में राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कहा था कि लोकसभा चुनाव में पार्टी उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारेगी। इस सूची में पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल, ए राजा, कमल नाथ, मायावती, मुलायम सिंह यादव, सुशील कुमार शिंदे, नितिन गडकरी, पवन वंसल, विरप्पा मोइली, नवीन जिंदल, श्रीप्रकाश जयसवाल अनुराग ठाकुर, सलमान खुर्शीद, अनंत कुमार सहित कई अन्य नेताओं के नाम शामिल था।
सुप्रीम कोर्ट ने एलजी को बताया बॉस
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल के बीच केन्द्र शासित इस प्रदेश के प्रशासनिक मामलों में प्रधानता को लेकर चल रहे विवाद में गुरुवार (2 नवंबर) को सुनवाई शुरू की। न्यायालय ने इस दौरान टिप्पणी की कि संविधान की व्यवस्था पहली नजर में उपराज्यपाल के पक्ष में है। हालांकि शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि उपराज्यपाल फाइल रोक कर नहीं बैठ सकते और सरकार और उपराज्यपाल के बीच किसी मसले पर मतभेद होने की स्थिति में राष्ट्रपति की राय निर्णायक होगी।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि संविधान का अनुच्छेद 239 एए दिल्ली के संबंध में विशिष्ट है और पहली नजर में ऐसा लगता है कि दूसरे केन्द्र शासित प्रदेशों से इतर दिल्ली के उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार दिये गये हैं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं।
संविधान पीठ दिल्ली हाई कोर्ट के चार अगस्त, 2016 के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली राज्य नहीं है और इसलिए उपराज्यपाल ही इसके प्रशासनिक मुखिया हैं। शीर्ष अदालत ने 15 फरवरी को इस मामले को संविधान पीठ को सौंपा था।
आप सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि उसके मंत्रियों को नौकरशाहों की राय प्राप्त करने के लिये उनके सामने गिडगिडाना पडता है और अनुच्छेद 239एए के प्रावधान की वजह से बाबू उन्हें विभागों के प्रमुख के रूप में नहीं मानते हैं।
इस पर पीठ ने इस दौरान कहा कि दिल्ली के लिये अनुच्छेद 239एए विशिष्ट है। पहली नजर में ऐसा लगता है कि यह अन्य केन्द्र शासित प्रदेशों की तुलना में उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार देता है। संविधान के अंतर्गत दिल्ली में उपराज्यपाल को प्रधानता प्राप्त है।