नोटबंदी के प्लान को बनाने के लिए रेवेन्यू सेक्रेटरी हसमुख अढिया समेत 6 लोगों की एक टीम बनी थी। ये पीएम मोदी के घर पर गुप्त रूप से काम करते थे। बताया जाता है कि इस टीम में शामिल अफसरों को गोपनीयता बरतने की शपथ दिलाई गई थी। मोदी के घर 2 कमरों में इसकी रिसर्च होती थी।

पीएम मोदी के पसंदीदा नौकरशाह हसमुख अढिया नोटबंदी की गुप्त योजना की अगुवाई कर रहे थे जिसके तहत एक रात में ही देश की 86 फीसदी नोटों को चलन से बाहर कर दिया। इस मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय राजस्व सचिव हसमुख अधिया और पांच अन्य नोटबंदी की इस योजना से गुप्त रूप से अवगत थे और इसे पूरी तरह सीक्रेट रखा हुआ था। उन्हें युवाओं की एक रिसर्च टीम दी गई थी जो प्रधानमंत्री मोदी के नई दिल्ली आवास के दो कमरों में लगातार काम कर रही थी। इस टीम में शामिल अफसरों को गोपनीयता बरतने की शपथ तक दिलाई गई थी।
वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी अधिया 2003-06 में गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान प्रधान सचिव के तौर काम किया था। अधिया को 2015 में राजस्व सचिव बनाया गया था। वैसे तो अधिया की रिपोर्टिंग वित्त मंत्री अरुण जेटली को थी, लेकिन वह सीधे मोदी के साथ संपर्क में रहते थे और जब दोनों इस मुद्दे पर मिलते थे गुजराती में बात करते थे।
रॉयटर्स की खबर के मुताबिक, तैयारियों के वक्त शोध में यह सब परेशानी निकलकर आई थीं जो कि इस वक्त लोग महसूस कर रहे हैं। जैसे ज्यादातर लेबर को सैलरी कैश में मिलती है, ज्यादा काला धन आ सकता है, धंधे ठप्प पड़ सकते हैं लेकिन पीएम मोदी इसे लागू करने का मन बना चुके थे। उन्होंने संसदीय मीटिंग में कहा था, ‘मैंने सारी रिसर्च कर ली है। अगर यह फेल होता है तो सारी जिम्मेदारी और दोष मेरा होगा।’ मीटिंग में शामिल होने वाले तीन मंत्रियों ने ही इस बात की जानकारी दी है। खबर के मुताबिक, मोदी ने ऐसा करके अपनी साख और लोकप्रियता को दांव पर लगा दिया था।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, अधिया के जिन सहकर्मियों के साथ रॉयटर्स ने बातचीत की, वह इस सरकारी अफसर की ईमानदारी का गुणगान कर रहे थे। इस अभियान से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ‘हम सारे पत्ते नहीं खोलना चाहते थे। अगर किसी को ज़रा सी भी भनक पड़ जाती तो सारी मेहनत बेकार हो जाती।’ अधिया की अगुवाई में रिसर्चरों की टीम ने एक अनुमानित अभ्यास भी किया जिसमें इस फैसले के प्रभाव का अनुमान लगाया गया।
इस टीम में डाटा और वित्त आंकलन करने वाले युवा शामिल थे, इनमें से कुछ वह थे जो पीएम मोदी का सोशल मीडिया अकाउंट और वह स्मार्टफोन एप संभालते हैं जिससे पीएम जनता की राय मांगते हैं। हालांकि इस बड़ी योजना और तैयारियों के बावजूद पीएम मोदी और अधिया जानते थे कि जरूरी नहीं कि हर अंदाज़ा सही हो और इसलिए उन्हें संभलकर चलने की जरूरत है।
तमाम तैयारियों के बावजूद ऐलान के बाद जनता को असुविधा तो हो रही है और एटीएम के बाहर लाइनें एक महीने बाद भी खत्म नहीं हुई हैं। वैसे भी यह ज़ाहिर बात है कि अगर सब कुछ ठीक भी रहता तो भारत में बैंकनोट छापने वाली चार प्रेस को 500 और 2000 के नए नोट छापकर उन्हें वितरण प्रणाली में लाने में कम से कम तीन महीने तो लगने ही थे।