अब फिल्म से पहले सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना जरूरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने खत्म की अनिवार्यता

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सिनेमाघरों में फिल्म दिखाए जाने से पहले राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (9 जनवरी) को अपने ही आदेश को पलटते हुए अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना जरूरी नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार की कमेटी इसे लेकर अगले नियम तय करेगी। बता दें कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख बदलने के बाद माना जा रहा था कि सुप्रीम कोर्ट भी अपना फैसला पलट सकता है।

(HT File Photo)

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने 2016 के आदेश में सुधार करते हुये सिनेमाघरों में फिल्म के प्रदर्शन से पहले राष्ट्रगान बजाने को अब स्वैच्छिक कर दिया है। शीर्ष अदालत ने 30 नवंबर, 2016 के अपने आदेश में संशोधन करते हुये राष्ट्रगान बजाने को स्वैच्छिक कर दिया। इससे पहले, न्यायालय ने अपने आदेश में फिल्म के प्रदर्शन से पहले सिनेमाघरों के लिये राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य बना दिया था।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि केन्द्र द्वारा गठित 12 सदस्यीय अंतर-मंत्रालयी समिति सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के बारे में अंतिम निर्णय लेगी। अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ को सूचित किया कि यह समिति छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी।

पीठ ने कहा कि समिति राष्ट्रगान बजाने से संबंधित सारे पहलुओं पर विस्तार से विचार करेगी। इसके साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ताओं को इस समिति के समक्ष अपना प्रतिवेदन रखने की अनुमति प्रदान कर दी। पीठ ने उसके समक्ष लंबित याचिकाओं का निस्तारण करते हुये कहा कि राष्ट्रीय सम्मान के अनादर की रोकथाम कानून 1971 में संशोधन के बारे में सुझाव देने के लिये 12 सदस्यीय समिति गठित की जा चुकी है।

दरअसल, इससे पहले सोमवार (8 जनवरी) को अपने रुख में बदलाव लाते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाया कि सिनेमाघरों में किसी फिल्म की शुरूआत से पहले राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य बनाने के उसके पहले के आदेश में बदलाव किया जाना चाहिए। केंद्र ने कहा कि एक अंतर-मंत्रालयीन समिति बनाई गई है, क्योंकि उन परिस्थितियों और अवसरों को वर्णित करने वाले दिशानिर्देश तय करने के लिए गहन विचार-विमर्श जरूरी हैं जब राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिए।

सरकार ने कहा था कि शीर्ष अदालत तब तक पूर्व की यथास्थिति बहाल करने पर विचार कर सकती है यानी 30 नवंबर 2016 को इस अदालत द्वारा सुनाये गये आदेश से पहले की स्थिति को बहाल कर सकती है। इस आदेश में सभी सिनेमाघरों में फीचर फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य किया गया था।

आपको बता दें कि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र की पीठ ने 30 नवंबर 2016 को दिए एक आदेश में हर सिनेमाघर में फिल्म चालू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का आदेश दिया था। इस दौरान दर्शकों को इसके सम्मान में खड़ा होना लाजिमी किया गया था।

सरकार ने कहा कि उसने गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव सीमा प्रबंधन की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालयीन समिति बनाने का फैसला किया है जिसमें रक्षा, विदेश, संस्कृति, महिला और बाल विकास तथा संसदीय कार्य मंत्रालय समेति विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि होंगे।

केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि इसमें सूचना और प्रसारण तथा अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालयों, विधि मामलों के विभाग, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग तथा विकलांग जन अधिकारिता विभाग के प्रतिनिधि भी होंगे। सरकार ने कहा कि समिति को राष्ट्रगान से जुड़े अनेक विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श करना होगा और कई मंत्रालयों के साथ गहन मंथन करना होगा। समिति इसके गठन से छह महीने के अंदर अपनी सिफारिशें देगी।

‘देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के समय खड़ा होना जरूरी नहीं’

गौरतलब है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 23 अक्टूबर 2017 को कहा था कि देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के समय खड़ा होना जरूरी नहीं हैं। न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को नियंत्रित करने के लिए नियमों में संशोधन पर विचार किया जाए।

साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के लिये खडा नहीं होता है तो ऐसा नहीं माना जा सकता कि वह कम देशभक्त है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोग सिनेमाघरों में मनोरंजन के लिये जाते हैं। समाज को मनोरंजन की आवश्यकता है। हम आपको (सरकार) हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की अनुमति नहीं दे सकते।

पीठ ने कहा कि अपेक्षा करना एक बात है लेकिन इसे अनिवार्य बनाना एकदम अलग बात है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि सिनेमाघरों और अन्य स्थानों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, ये वो तय करे। इस संबंध में कोई भी सर्कुलर जारी किया जाए तो सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित ना हों।

 

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