प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के एक पूर्व सदस्य के बाद पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने शनिवार (16 मई) को कहा कि कोयला ब्लॉकों, टूजी स्पेक्ट्रम लाइसेंस और कर्नाटक तथा गोवा में लौह अयस्क खनन के सभी आवंटन रद्द करते हुए तथा पर्यावरण को बचाने के उत्साह में सुप्रीम कोर्ट ‘‘अपने रास्ते से भटक गया’’ जिससे देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका लगा।
सीजेआई नीत कॉलेजियम द्वारा उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के अधिकार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को ‘‘न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए एकमात्र निकाय होने के अधिकार को त्याग देना चाहिए।’’ बता दें कि, राजग सरकार ने मुकुल रोहतगी को 19 जून 2014 को अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया था और वह 18 जून 2017 तक इस पद पर रहे थे। उन्होंने ‘सुप्रीम कोर्ट की 1950 से लेकर अब तक की यात्रा’ विषय पर प्रोफेसर एन आर माधव मेनन स्मारक व्याख्यान के दौरान यह बात कही।
कोयला ब्लॉक और टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन और कर्नाटक तथा गोवा में लौह या खनन लाइसेंसों को रद्द करने का फैसला पूर्ववर्ती संपग्र सरकार के शासनकाल में आया था और तत्कालीन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक आंदोलनों में इन फैसलों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। कोरोना वायरस के कारण स्वास्थ्य संकट के दौरान वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई होने की वर्तमान व्यवस्था पर रोहतगी ने कहा कि व्यवस्था के तकनीकी पहलु के कारण कुछ मुद्दे हैं लेकिन इसमें सुधार हो सकता है और इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
समाचार एजेंसी पीटीआई (भाषा) की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई कि आने वाले दिनों में और अधिक पीठ मामलों की सुनवाई करेंगे। स्वतंत्रता के बाद उच्चतम न्यायालय के बड़े फैसलों के बारे में रोहतगी ने कहा, ‘‘पर्यावरण संरक्षण के अपने उत्साह, सरकार के आदेशों और काम नहीं करने की व्यवस्था को दुरूस्त करने के अपने उत्साह में उच्चतम न्यायालय ने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका दिया। इस तरह का एक उदाहरण देश भर में कोयला खदानों के आवंटन को रद्द करना है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अदालत ने जब कोयला ब्लॉक, कोयला खदान के सभी आवंटनों को रद्द कर दिया तो लाखों-करोड़ों के विदेशी निवेश, लाखों-करोड़ों के उपकरण, आधारभूत ढांचे और लाखों नौकरियां चली गईं, क्योंकि सरकार ने कानून का सही तरीके से पालन नहीं किया था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यही बात टूजी मामले में हुई। देश को काफी नुकसान हुआ। गोवा और कर्नाटक में लौह अयस्क खदानों को रद्द करना भी इसी तरह का एक और मामला है। अदालत को इस तरह का फैसला देने से पहले आर्थिक प्रभाव देखना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट रास्ता भटक गया था।’’
सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में जिस तरीके से न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है उस पर नाखुशी जताते हुए उन्होंने कहा कि संविधान के तहत उनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा होनी चाहिए ‘‘जिसका मतलब है कि उस समय की सरकार द्वारा क्योंकि राष्ट्रपति सरकार की इच्छा से निर्देशित होते हैं।’’ रोहतगी ने कहा, ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से हाल में दिए गए एक फैसले के माध्यम से (एनजेएसी फैसला) अदालत ने इस सिद्धांत का पालन नहीं किया कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगी और वह प्रधान न्यायाधीश से सलाह लेगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय को न्यायाधीशों की नियुक्ति का एकमात्र निकाय होने के अधिकार को छोड़ देना चाहिए। किसी भी देश में न्यायाधीश खुद को नियुक्त नहीं करते। नये खून, नयी दूरदृष्टि वाले, नये विचार वाली व्यवस्था होनी चाहिए ताकि पता लगाया जा सके कि कौन अच्छे न्यायाधीश हैं।’’
रोहतगी के मुताबिक उच्चतम न्यायालय में नियुक्तियां योग्यता के आधार पर होनी चाहिए जहां वरिष्ठता का ख्याल रखा जा सकता है लेकिन ऐसा भी नहीं हो कि वरिष्ठता के कारण योग्यता को नजरअंदाज किया जाए। आपातकाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी कर कनिष्ठों को प्रधान न्यायाधीश बना दिया गया। कार्यक्रम का आयोजन अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद् ने किया था जो आरएसएस से जुड़ा वकीलों का संगठन है।