श्रीनगर में प्रशासन ने रविवार को घोषणा की कि वह सोमवार से शहर के 900 प्राथमिक स्कूलों में से 193 को फिर से खोल रहा है। हालांकि, माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को भेजने से इनकार करने के बाद सोमवार को स्कूलों को खोलते ही बंद करना पड़ा।
सरकार के भीतर कुछ अफसरों सहित कई लोगों का ये माना था कि बच्चों को स्कूल नहीं भेजना स्थानीय आबादी द्वारा ‘नागरिक कर्फ्यू’ का एक हिस्सा था, कुछ अभिवावकों ने जनता का रिपोर्टर के प्रधान संपादक रिफत जावेद से कहा कि अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने के पीछे असल वजह ये थी कि वो बच्चों की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं थे। एक पिता ने कहा कि अपने बच्चों को स्कूल भेजने का तब तक कोई सवाल ही नहीं उठता जब तक स्थिति पूरी तरह से सामान्य नहीं हो जाती और फोन लाइनें पूरी तरह से काम करना नहीं शुरू कर देती।
वर्तमान में, केवल सीमित संख्या में लैंडलाइन फोन ही चालू किए गए हैं जबकि मोबाइल फोन और इंटरनेट पर प्रतिबंध अब भी पूरी तरह से लागू है।
जनता का रिपोर्टर के प्रधान संपादक रिफत जावेद ने सोमवार को श्रीनगर के प्रेजेंटेशन कॉन्वेंट स्कूल के बाहर दो अभिभावकों के साथ बातचीत की। उनमें से एक, रियाज़ ने कहा कि सरकार के हालिया फैसलों ने उनकी स्थिति को ‘जीवित नरक’ बना दिया है। रियाज़ ने कहा कि सरकार द्वारा लगायी गयी पाबंदियों का उनके व्यवसाय पर बहुत बुरा असर पड़ा।
रियाज ने पूछा, “हर कोई स्कूल के आसपास के क्षेत्र में नहीं रहता है। हममें से कुछ को स्कूल आने के लिए 20 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। हम अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर डरे हुए और चिंतित हैं। सड़कों की बैरिकेडिंग के कारण, छोटी कार को गुजरने के लिए भी जगह नहीं है। क्या बच्चों को स्कूल भेजने का यह सही माहौल है? ”
रियाज़ ने मीडिया को उनकी दयनीय हालत के लिए भी दोषी ठहराया। उन्होंने कहा, “आपके मीडिया ने सरकार की तुलना में हमारा अधिक विनाश किया है।”
आप रिफ़त जावेद की विशेष रिपोर्ट नीचे देख सकते हैं: