बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता संजय दत्त की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं, क्योंकि उनकी मुश्किलें एक बार फिर बढ़ सकती है। दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट ने संजय दत्त को जल्द रिहा किए जाने पर सवालिया निशान उठाया है। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा है कि जब संजय दत्त अपनी कैद के आधे समय तक पैरोल पर बाहर ही रहे, ऐसे में उन्हें जल्दी रिहा कैसे किया जा सकता है।
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें इस बात का उल्लेख हो कि संजय दत्त के प्रति उदारता बरतने का फैसला लेने के लिए किन मानकों पर विचार और किन प्रक्रियाओं का पालन किया गया। जस्टिस आरएम सावंत और जस्टिस साधना जाधव की खंडपीठ ने सोमवार(12 जून) को पुणे निवासी प्रदीप भलेकर की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
इस याचिका में सजा के दौरान संजय दत्त को दी गईं पैरोल और फरलो को चुनौती दी गई है। सुनवाई के दौरान जस्टिस सावंत ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा, ‘क्या डीआइजी (कारागार) से मशविरा किया गया था या जेल अधीक्षक ने सीधे राज्यपाल को अपनी सिफारिश भेजी थी। साथ ही कोर्ट ने पूछा सरकार यह भी बताएं कि अधिकारियों ने इस बात का आंकलन कैसे किया कि संजय दत्त का आचरण अच्छा था?
उन्होंने यह आंकलन किस समय किया, जबकि आधे समय तो वह पैरोल पर बाहर थे।’ अदालत इस मामले की सुनवाई एक हफ्ते बाद फिर करेगी। बता दें 1993 के सीरियल ब्लास्ट के मामले में संजय को पांच साल कैद की सजा हुई थी। ट्रायल के समय जमानत पर चल रहे संजय दत्त ने मई 2013 में सरेंडर किया उन्हें तय वक्त से आठ महीने पहले ही जमानत दे दी गई थी।
लंबी सुनवाई के दौरान संजय दत्त ने 18 महीने जेल में बिताए थे। 31 जुलाई, 2007 को मुंबई की टाडा अदालत ने उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत छह साल के कठोर कारावास और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। मई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा के फैसले को बरकरार रखते हुए कारावास की अवधि घटाकर पांच साल कर दी थी।
इसके बाद संजय दत्त ने 2013 में सरेंडर कर दिया था। जिसके बाद अच्छे आचरण को देखते हुए फरवरी, 2016 में सजा पूरी होने से आठ माह पूर्व ही उन्हें पुणे की यरवदा जेल से रिहा कर दिया गया था। सजा के दौरान उन्हें दिसंबर 2013 में 90 दिनों की और फिर 30 दिनों की पैरोल दी की गई थी।