केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहिर ने केंद्र शासित प्रदेश दमन व दीयू को देश का पहला नकदीरहित क्षेत्र बनाने के लिए यहां के प्रशासन के प्रयासों की सराहना की थी। लेकिन ये दावा सरासर गलत निकला और सच्चाई इससे बिल्कुल अलग निकली।
कहा गया था कि प्रशासन ने यहां वाई-फाई सेवा शुरू की और बीते 45 दिनों में 32,000 से अधिक पर्यटकों ने 3500 जीबी डेटा का इस्तेमाल किया है। सरकारी बयान के अनुसार अहिर ने दमन और दीयू में विकास परियोजनाओं की समीक्षा की और प्रशासनिक कार्यो की सराहना जमकर सराहना की।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहिर द्वारा प्रशासनिक कार्यो की सराहना को आधिकारिक तौर पर एक विज्ञप्ति के रूप में वेबसाइट पर भी डाला गया।
इसके बाद कई प्रमुख न्यूज़ वेबसाइटों द्वारा इस बात को प्रमुखता के साथ जाहिर किया गया कि दमन व दीयू कैशलेस प्रदेश बन गया है। 21 दिसंबर के अपने लेख में टाइम्स आॅफ इंडिया वेबसाइट ने और जी़ न्यूज वेबसाइट ने भी इस तरह की खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित किया था।
जनसत्ता की खबर के अनुसार, दीव में बड़ी तादाद में टूरिस्ट घूमने आते हैं और यहां पर शराब का अच्छा-खासा कारोबार होता है। यहां पर लगभग 60 शराब की दुकाने और 260 बार्स हैं, लेकिन नोटबंदी से हुई कैश की कमी ने इस पर भी अपना असर डाला है। दीव के सिर्फ 200 बार्स में ही पीओएस मशीने हैं, लेकिन इनमें से कई लोगों के कारोबार कैश पर ही निर्भर हैं।
दीपी बार के मालिक ने बताया कि यहां पर पीओएस मशीन से सिर्फ 20% का कारोबार ही होता है। वहीं दूसरी तरफ कई कारोबारियों को पीओएस मशीन मिलने में 1-1 महीने तक का समय लग रहा है। एक और शराब कारोबारी, वैश्य ने कहा, “मेरा थोक (होलसेल) का काम है और मेरा 30-40% काम कैश पर निर्भर रहता है। इसकी वजह यही है कि छोटे बार अभी भी कैश में डील करते हैं और मेरी पेमेंट्स मुझे कैश में मिलती है”
दमन और दीव के मूल निवासी ज्यादातर मछली के कारोबार में हैं। अशोक एक ट्रॉलर के मालिक हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें हर एक मछली पकड़ने की ट्रिप का खर्चा लगभग 2 लाख रुपये का होता है। इसमें से कुछ भुगतान तो चेक के जरिए हो जाता है लेकिन कैश की भी जरूरत होती है क्योंकि साथी मछुआरों के लिए राशन और बाकी सामान लेना होता है। दमन में लगभग 85 हजार मजदूर काम करते हैं जो मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा जैसे राज्यों से आए हैं और उन्हें कैश की कमी होने से उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है
वहीं बड़ी संख्या में जनरल स्टोर्स को भी पीओएस मशीने मिलने में काफी समय लग रहा है। हॉनेस्ट एंटरप्राइज के मालिक इमरान वोरा ने बताया उन्होंने एसबीआई से पीओएस मशीने लेने के लिए उन्होंने 25 दिन पहले एप्लाई किया था लेकिन बैंक अधिकारियों ने उन्हें बताया कि इसमें वक्त लगेगा।
वहीं एक और हार्डवेयर कारोबारी बिपिन शाह ने भी कहा कि उनकी 10 में 9 लेनदेन कैश पर निर्भर रहती है और चेक का इस्तेमाल बड़ी पेमेंट्स के लिए होता है। इसके अलावा एक पार्किंग ठेका चलाने वाले कमलेश ने कहा “मेरे काम में लेनदेन 100 या 50,10,20 रुपये की छोटी रकम में होती है। ऐसे में मुझे कोई क्यों पीओएस मशीन देगा”।
इसके अलावा वहां की टेक्सटाइल फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को भी चेक से पेमेंट नहीं हो पा रही है क्योंकि कई लोगों के पास बैंक अकाउंट्स नहीं हैं
वहीं इस मामले पर सेंट्रल बैंक के एसिसटेंट ब्रांच मैनेजर नीरज ने कहा, “कैश की कोई कमी नहीं है और हमें 13 पीओएस मशीनों की ऐप्लीकेशन्स मिली हैं जिसे हमने आगे बढ़ा दिया है।” वहीं डेप्यूटि कलेक्टर करनजीत ने कहा, “यहां पर लगभग 535 चालू पीओएस मशीन्स हैं, लेकिन बदालाव रातो-रात तो नहीं आता थोड़ा समय तो लगता है और हम इस दिशा में काम कर रहे हैं।”
ज़मीनी तौर पर केंद्र शासित प्रदेश दमन और दियू में अभी भी अधिकांशत नकदी पर ही व्यापार किया जा रहा है जो कैशलेस होने के दावों को पूरी तरह से खारिज कर देता है।