विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने जीडीपी के नवीनतम आंकड़ों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, जिसमें कहा गया है कि भारत के विकास में गिरावट “बहुत चिंताजनक” हैं। बसु ने कहा नोटबंदी के इस राजनीतिक फैसले की देश को एक भारी कीमत चुकानी होगी जिसका भुगतान देशवासियों को करना पड़ेगा।
नोटबंदी और GST का असर नए वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देखने को मिला है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर में बड़ी गिरावट हुई है और यह तीन साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है।अप्रैल से जून की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद, जीडीपी की विकास दर महज 5.7 फीसदी रही है।
चीन ने जनवरी-मार्च और अप्रैल-जून तिमाहियों में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। केंद्रीय वित्त मंत्री ने स्वीकार किया कि जीडीपी के बारे में नवीनतम आंकड़े चिंता का विषय थे, परन्तु ‘GST के असर के चलते इस के कारण उत्पादन में कमी आ रही थी।
विश्व बैंक के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मुख्य अर्थशास्त्री बसु ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि विकास में गिरावट बहुत चिंताजनक है। मुझे पता था कि यह 6 फीसदी से कम हो जाएगा, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा नकारात्मक झटका है। लेकिन 5.7 फीसदी विकास दर उम्मीद से बहुत कम है।
बसु ने कहा 2003 से 2011 तक भारत में विकास दर आम तौर पर प्रति वर्ष 8 प्रतिशत से अधिक रही है। वैश्विक संकट के चलते वर्ष, 2008 में, यह संक्षेप में 6.8 प्रतिशत पर गिरी, लेकिन 8 प्रतिशत से अधिक की गिरावट विकास भारत के लिए हैरान कर देने वाली है।
बसु ने आगे कहा कि ऐसे में जब तेल की कीमतें बेहद कम हैं, और चीन ने भारत को अंतरिक्ष में सीडिंग किया हो और हमारा विकास 8 प्रतिशत से अधिक हो गया है। इसलिए, पहली तिमाही में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि दर का मतलब है कि विकास के 2.3 प्रतिशत अंक पर आ जाने की वजह से रूक गया है। यह एक भारी कीमत है।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी के मिले परिणाम बेहद निराशाजनक रहे है लेकिन इन गलतियों को ठीक किया जा सकता है। आपको बता दे कि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह बताया गया कि नोटबंदी के दौरान कुल 99% बैन किए गए नोट बैंकों में जमा हो गए। इसका मतलब हुआ कि सिर्फ 1.4% हिस्से को छोड़कर बाकी सभी 1000 रुपए के नोट सिस्टम में लौट चुके हैं।
वर्तमान में न्यूयॉर्क के कॉर्नेल विश्वविद्यालय बतौर एक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बसु ने कहा कि यह छोटे व्यापारियों, अनौपचारिक क्षेत्र और गरीबों को सबसे ज्यादा पीड़ित करने वाला फैसला था। जिन पर इसका सबसे अधिक असर पड़ा। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यह एक नीतिगत जोखिम है जो हमें डिजिटल करने की कोशिश करता है जिसकी वजह से हम नकदी के लेन-देन से दूर कर रहा है
आपको बता दे कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान करते वक्त इसे भ्रष्टाचार, काले धन और जाली नोटों के खिलाफ जंग बताया था। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के बाद सरकार के इस दावे पर सवाल उठ रहे हैं। नोटबंदी से पहले 15.44 लाख करोड़ की कीमत के 1000 और 500 के नोट प्रचलन में थे। इनमें से कुल 15.28 लाख करोड़ रुपए की कीमत के नोट बैंकों में वापस आ गए। साल 2016-17 के दौरान 632.6 करोड़ 1000 रुपए के नोट प्रचलन में थे, जिनमें से 8.9 करोड़ नोट सिस्टम में लौटे।
काले धन पर सरकार के अकुंश लगाने की बात आज एक जुमला साबित हो रही है। पीएम मोदी ने जोरदार तरीके से घोषणा करते हुए कहा था कि कालेधन को जमा करने वालों को चैन की नींद नहीं आएगी। लेकिन अब रिजर्व बैंक की रिपोर्ट आने के बाद सरकार का यह दावा खुद ब खुद खारिज हो जाता है। अब सरकार का इस मुद्दे पर बचाव करते हुए कहना है कि नोटबंदी के फैसले का कालेधन को लगाम लगाने का उद्देश्य तो था ही नहीं।
गौरतलब है कि, नोटबंदी के बाद पहली बार विकास दर में इतनी भारी गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि नोटबंदी और वस्तु व सेवा कर, जीएसटी की वजह से बड़ी गिरावट हुई है। जीएसटी लागू होने की वजह से कंपनियों के उत्पादन में कमी आई है और इससे विनिर्माण गतिविधियों में शिथिलता आईस जिसके कारण विकास दर कम रही।
विशेषज्ञों की माने तों पिछले साल 8 नवंबर को घोषित नोटबंदी के बाद से अर्थव्यवस्था को लगातार झटके लग रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक अगले कुछ तिमाहियों तक बेहतर प्रदर्शन करने के बाद ही भारत फिर से चीन से आगे निकल सकेगा।