सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून में प्रस्तावित संशोधन को केंद्रीय सूचना आयोग की पीठ में ‘छुरा घोंपना’ और इस कानून पर ‘घातक प्रहार’ करार देते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने सांसदों से इन बदलावों को अस्वीकार करने की अपील की है। कई हाई प्रोफाइल मामलों में अपने पारदर्शी समर्थक आदेशों के लिए चर्चित पूर्व सूचना आयुक्त ने कहा है कि प्रस्तावित परिवर्तन सूचना आयोग की स्वायत्तता को ‘गंभीर रूप से कमजोर’ कर देंगे।

मशहूर विधि प्रोफेसर आचार्युलु ने कहा कि इस गलत कदम से सूचना आयुक्त कोई भी खुलासा आदेश जारी करने को लेकर नख-दंत विहीन हो जाएंगे और वे सूचना के अधिकार कानून के उद्देश्यों को अमलीजामा नहीं पहना पाएंगे। उन्होंने सांसदों को पत्र लिखकर कहा, ‘‘यदि सांसद इस विधेयक को मंजूरी दे देते हैं तो राज्य और केंद्र सरकार में सूचना आयुक्त वरिष्ठ बाबुओं के महज अनुलग्नक या पिछलग्गू रह जाएंगे। मैं लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों से इसका विरोध करने और यह सुनिश्चित करने की अपील करता हूं कि यह खारिज हो जाए।’’
उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में राज्यसभा सदस्यों के कंधों पर अधिक जिम्मेदारी है। सरकार सूचना आयुक्त के कार्यकाल और सेवा शर्तों को बदलकर एक नई व्यवस्था लाना चाहती है जहां उनके कार्यकाल और सेवा शर्त केंद्र सरकार निर्धारित करेगी। फिलहाल सूचना आयुक्त के कार्यकाल एवं सेवा शर्त चुनाव आयुक्त के समतुल्य हैं।
प्रस्तावित विधयेक को कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया था। आचार्युलू ने ही दिल्ली विश्वविद्यालय को 1978 बैच (जिस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्नातक किया था) के बीए पास के विद्यार्थियों के अकादमिक रिकॉर्ड का खुलासा करने और पारदर्शिता पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर आरबीआई गवर्नर को तलब करने का आदेश जारी किया था।
संशोधन को लेकर बवाल
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा में सूचना अधिकार संशोधन बिल पेश किया है जिसमें मुख्य सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल से लेकर उनके वेतन और सेवा शर्तें निर्धारित करने का फैसला केंद्र ने अपने हाथ में रखने का प्रस्ताव रखा है। सोमवार को लोकसभा में इसको बिल को मंजूरी मिल गई। इस संशोधन बिल का संसद और इसके बाहर विपक्ष ने कड़ा विरोध किया है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानव अधिकार संस्थाओं ने सोमवार को दिल्ली में कड़ा विरोध प्रदर्शन किया।
इस संशोधन को इस बिल की मूल भावना को मारने जैसा बताया गया और विपक्ष ने कहा कि यह पारदर्शिता पैनल की स्वतंत्रता पर हमला है। विपक्ष के कई नेताओं ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है। विपक्ष के इन आरोपों का जवाब देते हुए सरकार की ओर से सफाई दी गई है कि यूपीए सरकार ने कुछ बिंदुओं को छोड़ दिया था। इस ऐक्ट में नियम बनाने का कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए यह संशोधन जरूरी था।
सरकार ने दी सफाई
आरटीआई अधिनियम में संशोधन को लेकर विपक्ष की आलोचना को निर्मूल करार देते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार पारदर्शिता तथा विभिन्न सरकारी विभागों से जुड़ी सूचनाओं के निर्वाध प्रवाह को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री जावड़ेकर ने ट्वीट किया, ‘एक वर्ग की ओर से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण ढंग से सरकार को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है । उनकी इस आलोचना में कोई दम नहीं है कि आरटीआई कानून में संशोधन से सूचना आयोग की स्वायत्तता प्रभावित होगी ।’
उन्होंने कहा कि इससे सूचना आयोग की स्वायत्तता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जावड़ेकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार सूचनाओं के वास्तविक एवं निर्बाध प्रवाह को मजबूत बनाने को प्रतिबद्ध है। इसलिए स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकारी विभागों से अधिकतम सूचना प्रदान करने को प्रोत्साहित किया जाता है। (इनपुट- भाषा के साथ)