केंद्र सरकार ने पिछले 40 सालों में 44 हजार करोड़ रुपये की ग्रांट बिना यह देखे जारी कर दी कि काम हुआ भी है या नहीं। स्वास्थ्य, कृषि और मानव संसाधन विकास समेत कई मंत्रालयों ने पिछले कुछ सालों में यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट लिए बिना 44 हजार करोड़ रुपये जारी कर दिए। यह पैसा वैधानिक संस्थाओं और संगठनों को दिया गया। अब इस बात भी कोई सबूत नहीं है कि किसे कितना पैसा मिला।
सीएजी (CAG) की नई रिपोर्ट में 43 हजार से ज्यादा यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स पर सवाल उठाए गए हैं, जो मार्च 2013 के आखिर तक पेंडिंग थे। इनके तहत 44 हजार करोड़ रुपये जारी किए गए थे। यह आंकड़ा और बढ़ सकता है, क्योंकि पावर, पंचायती राज, ग्रामीण विकास, पेट्रोलियम, सार्वजनिक उपक्रम और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालयों ने CAG के साथ जानकारी साझा नहीं की है।
कुछ ऐसे यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स भी हैं, जो 4 दशक पुराने हैं। उदाहरण के लिए डिपार्टमेंट ऑफ हायर एजुकेशन अभी तक 1977-78 में दी गई ग्रांट के तहत हुए खर्च की डीटेल्स का इंतजार कर रहा है। स्पेस डिपार्टमेंट 1976-77 के खर्च की जानकारी का इंतजार कर रहा है। इसी तरह से घोटालों के लिए चर्चित कॉमनवेल्थ गेम्स के 1 हजार करोड़ रुपये के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट अभी तक पेंडिंग हैं।
यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट न मिलने की वजह से होने वाली समस्या सरकार के लिए नई नहीं है। पिछले सालों में यह देखा गया कि आखिरी तिमाही में सबसे ज्यादा फंड जारी किया गया, जबकि तब तक पहले ही काफी ज्यादा फंड जारी हो चुका होता था। अब वित्त मंत्रालय का खर्च विभाग फंड जारी करने में सख्ती बरत रहा है। सरकार चाहती है कि केंद्र प्रायोजित ज्यादातर योजनाओं के खर्च की छूट राज्य सरकारों को दे दी जाए, ताकि वे अपने विभाग की जरूरतों के हिसाब से फंड ले सकें।
स्वास्थ्य और मानव संसाधन विकास समेत कई मंत्रालयों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। उनका तर्क है कि राज्य सरकारें उन जगहों को नजरअंदाज कर सकती हैं, जिन्हें प्राथमिकता देने की जरूरत है और इससे विकास कार्य प्रभावित हो सकते हैं। मगर CAG ने पाया है कि इससे पहले मंत्रालयों का रवैया लापरवाही भरा रहा है। वे यह देखे बिना ही फंड जारी करते रहे कि उसका सही से इस्तेमाल भी हो रहा है या नहीं।