अगस्त 2017 में देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को ‘अवैध करार’ देने वाले फैसले पर जश्न मनाने वाली केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी, आरएसएस और मोदी सरकार के मंत्री अब केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश करने की इजाजत देने के अदालत के फैसले को मानने से इनकार कर रहे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शनिवार (27 अक्टूबर) को सबरीमला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध कर रहे भगवान अयप्पा के श्रद्धालुओं का खुलकर समर्थन किया।
अमित शाह ने सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के माकपा नीत एलडीएफ सरकार के फैसले का विरोध करने वाले श्रद्धालुओं को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए आरोप लगाया कि वामपंथी सरकार प्रदर्शनों को ताकत के बल पर ‘‘दबाना’’ चाहती है। बीजेपी दफ्तर का उद्घाटन करने के बाद शाह ने कहा कि प्रदेश सरकार श्रद्धालुओं के प्रदर्शन को चुनौती देने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल कर रही है।
इतना ही नहीं अमित शाह ने देश की अदालतों को सलाह भी दे दी कि अदालतें व्यावहारिक हों और वैसे ही फैसले दें, जिन्हें अमल में लाया जा सके। अमित शाह ने कहा कि सरकार और कोर्ट को ऐसे आदेश देने चाहिए, जिनका पालन हो सके। उन्हें आदेश ऐसे नहीं देने चाहिए जो लोगों की आस्था का सम्मान न कर सकें। आर्टिकल 14 की दुहाई दी जाती है और 25 व 26 के तहत धर्म के अनुसार रहने का मुझे अधिकार है।’
उन्होंने कहा, ”अदालतें इस तरह के फैसले ना दें जो व्यवहारिक ना हों। आखिरकार आप पांच करोड़ भक्तों के विश्वास को कैसे तोड़ सकते हैं? हिंदू कभी महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं करते। सभी त्योहारों में, पत्नियां अपने पति के साथ बैठकर त्योहार मनाती हैं।”
जेटली ने भी इशारों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाए सवाल
अमित शाह के अलावा इसी दिन शनिवार को ही केंद्रीय वित्त मंत्री और वरिष्ठ वकील अरुण जेटली ने भी इशारों-इशारों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर चल रहे विवाद के बीच जेटली ने कहा कि समाज में सरकारी या अन्य आदेश की बजाय भीतर से होने वाले सुधार ज्यादा आसान होते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी निजी राय है कि कोई एक मौलिक अधिकार किसी अन्य को खत्म नहीं कर सकता।
वित्त मंत्री ने कहा कि धार्मिक परंपरा और धर्म के प्रबंधन के संदर्भ में कहना है कि जब तक कोई प्रथा मानवीय मूल्यों के खिलाफ ना हो जाए, कुछ मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल अन्य मौलिक अधिकारों को खत्म करने के लिए करने से संभवत: नई तरह की चुनौतियां पैदा होंगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति में आयोजित पहले व्याख्यान में अपनी बात रखते हुए जेटली ने कहा कि एक ही संविधान सभा ने समानता और गरिमा के अधिकार के साथ-साथ धर्म को मानने और धार्मिक संस्थानों को प्रबंधित करने का अधिकार भी दिया।
There is an ongoing global debate between the ‘constitutionalists’ and the ‘devotees’. The ‘constitutionalists’ put Supreme Courts before Gods but devotees believe otherwise. Reconciliation of these two ideas is always a challenge: Shri @arunjaitley pic.twitter.com/AgbCwkKIus
— BJP (@BJP4India) October 27, 2018
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “क्या एक मौलिक अधिकार किसी अन्य पर हावी हो सकता है? क्या एक अधिकार दूसरे को खत्म कर सकता है? क्या एक अन्य को निष्प्रभावी कर सकता है? जवाब है- ना। दोनों बने रहेंगे इसलिए दोनों को सौहार्दपूर्ण तरीके से एकसाथ रहना होगा।” जेटली ने कहा कि भारतीय समाज में सामाजिक सुधारों की दिशा में काम होता रहा है। उन्होंने कहा कि बाल विवाह, सती, द्विविवाह, बहुविवाह पर प्रतिबंध और विधवा विवाह और संपत्ति में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने से सामाजिक सुधार किए गए।
उन्होंने कहा, “इसलिए सरकारी या अन्य आदेशों के मुकाबले समाज में भीतर से होने वाले सुधार ज्यादा आसान होते हैं।” आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 10 से 50 साल के उम्र की महिलाओं पर सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध को हटाए जाने के बावजूद वे इस परंपरा को बनाए रखने के हिमायती लोगों के विरोध के कारण अब तक मंदिर में प्रवेश करने में सफल नहीं रही हैं।
RSS प्रमुख मोहन भागवत भी कर चुके हैं आलोचना
अमित शाह और जेटली से पहले इसी महीने विजयादशमी के अवसर पर नागपुर में अपने वार्षिक संबोधन के दौरान राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने भी सबरीमाला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की थी। भागवत ने कहा था कि फैसला दोषपूर्ण है क्योंकि इसमें सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया गया और इसलिए इसे सहजता से स्वीकार नहीं किया जाएगा।
सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश की अनुमति दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरफ इशारा करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि 10 से 50 साल तक की लड़कियों एवं महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर मनाही की परंपरा बहुत लंबे समय से थी और इसका पालन किया जा रहा था। भागवत ने कहा, ‘‘(सुप्रीम कोर्ट में) याचिकाएं दाखिल करने वाले वे लोग नहीं हैं जो मंदिर जाते हैं। महिलाओं का एक बड़ा तबका इस प्रथा का पालन करता है। उनकी भावनाओं पर विचार नहीं किया गया।’’
तीन तलाक के फैसले को पीएम मोदी ने बताया था ऐतिहासिक
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल अगस्त महीने में तीन तलाक प्रथा की संवैधानिक वैधता पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। एक साथ तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार संसद में इस पर कानून बनाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीर्ष अदालत के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया था। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा था, ‘सुप्रीम कोर्ट का तीन तलाक पर फैसला ऐतिहासिक है। यह मुस्लिम महिलाओं को समानता देता है और महिला सशक्तीकरण के लिए एक मजबूत कदम है।’
Judgment of the Hon'ble SC on Triple Talaq is historic. It grants equality to Muslim women and is a powerful measure for women empowerment.
— Narendra Modi (@narendramodi) August 22, 2017
वहीं, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार दोनों को पार्टी की ओर से धन्यवाद देते हुए कहा था कि इस फैसले के साथ मुस्लिम महिलाओं के लिए नए युग की शुरुआत होगी। शाह ने अपने बयान में कहा, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आज तीन तलाक पर दिए गए ऐतिहासिक फैसले का मैं स्वागत करता हूं। यह फैसला किसी की जय या पराजय नहीं है। यह मुस्लिम महिलाओं के समानता के अधिकार और मूलभूत संवैधानिक अधिकारों की विजय है।’’
अब जबकि सबरीमाला मंदिर में भी महिलाओं के समानता के अधिकार और मूलभूत अधिकारों को लेकर ही सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। लेकिन बीजेपी, आरएसएस सहित केंद्र में सत्ताधारी मोदी सरकार मंत्री अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का खुलकर विरोध कर रहे हैं।
आपको बता दें कि सबरीमला मंदिर की पुरानी परंपरा के अनुसार 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को खत्म कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद अब भी महिलाओं को मंदिर में नहीं जाने दिया जा रहा है।