झारखंड सरकार के प्रेरणा पुंज बिरसा मुंडा की जंयती व 17 वें झारखंड के स्थापना दिवस के अवसर पर एक भव्य आयोजन राज्य सरकार द्वारा किया गया। लेकिन भारत के कई ग्रामीण इलाकों में ऐसे भव्य जश्न मनाने के कोई कारण नहीं है उन्हीं में से एक बिरसा मुंडा का पैतृक गांव खूंटी जिला के उलीहातु भी है जहां नोटबंदी के बाद से हालात बिल्कुल अलग है। इस गांव के डाकघर में कोई नकदी नहीं है और बैंक भी बंद है।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, वहीं के स्थानीय निवासी फागू नाग जो कैंसर के रोग से पीड़ित है, फागू को दवाईयों की सख्त जरूरत है। एक गोली की कीमत सौ रूपये है, लेकिन डाकघर में पैसे ना होने और बैंक बंद होने की वजह से वो अपने पैसे नहीं निकाल पा रहा है। उसका खाता सेंट्रल बैंक आॅफ इंडिया शाखा में है। जो बंद है। फागू के 6 बेटियां और 1 बेटा है।
नोटबंदी के घोषणा होने के बाद से 500 और 1000 के नोट चलना बंद हो गया जबकि फागू को दवाईयों के लिए रूपयों की सख्त जरूरत थी। उसके बेटे ने नोट बदलने की खातिर उलीहातु गांव से सैको गांव के लिए टेम्पो किया और फिर वहां से खूंटी शहर जाकर लम्बी लाइन में लगकर रूपये बदले। इतना होने पर भी वह कुछ रूपये ही पा सका जो उनके लिए काफी नहीं थे।
इसके अलावा वहां के कई बीपीएल कार्ड धारकों ने जो वहीं के स्थानीय निवासी है ने अपने जानवरों को बेचकर रुपयो का इंतजाम किया। जबकि ये लोग पहले ही कर्ज में डुबे हुए है।
फुगा ने बताया कि उसका आर्थिक उर्पाजन का गुजारा राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध ऐम्बूलेंस को चलाकर किया जाता है जो कि उसका भतीजा चलाता है जिसे केवल 12 रूपये किलोमीटर के हिसाब से लागत ली जाती है लेकिन पिछले कई दिनों से वह नहीं चल पा रही है, और लोगों ने उसकी बकाया राशि भी नहीं लौटाई है।
जबकि सेंट्रल बैंक खूंटी के प्रबंधक ने बताया कि पहले हम खूंटी के अलावा एक और ब्रांच चलाते थे जो कि हूंट में थी लेकिन वहां स्मार्ट कार्ड प्रयोग में नहीं हो रहे थे। उस ब्रांच को बंद कर दिया गया है।
पोस्ट मास्टर पूर्णप्रकाश ने बताया कि वे असमर्थ है लोगों को नकदी देने में उन्होंने अभी तक नये नोट नहीं देखें है। इस तरह के और भी उदाहरण भारत अन्य ग्रामीण परिवेशों में देखें जा सकते है जहां नोटबंदी के बाद लोगों को इस प्रकार के हालातों का सामना करना पड़ रहा हैं।