सऊदी अरब मौत की सजा देने के मामले में अन्य देशों के मुकाबले बहुत आगे हैं। हाल ही में 37 लोगों को दी गई मौत की सजा इसका उदाहरण है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि शिया समुदाय में बढ़ते असंतोष को दबाने के लिए भी सऊदी अरब मौत की सजा का राजनीतिक इस्तेमाल करता है। इसी संस्था ने बताया कि जिन लोगों को यह सजा दी गई उसमें अब्दुल करीम अल-हवज भी शामिल था। इसकी उम्र गिरफ्तारी के वक्त इसकी उम्र महज 16 साल थी। सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक इस साल अभी तक देश में 100 लोगों को मौत की सजा दी जा चुकी है।
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) का भी कहना है कि सऊदी अरब में हाल में जिन 37 लोगों को मौत की सजा दी गई उनमें 33 शिया मुसलमान थे। सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक सजा पाए सभी लोग आतंकवाद के दोषी ठहराए गए थे। एचआरडब्ल्यू के रिसर्चर एडम कुगल ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, “हम जानते हैं कि 33 लोग शिया मुसलमान थे।”
1. Abdulkareem al-Hawaj was a juvenile at age 16 when they arrested him. He was killed today by the Saudis.
His crime: apparently he "confessed" to being near a protest. pic.twitter.com/47Sa3WH1dp
— Esha ??? (@eshaLegal) April 23, 2019
सुन्नी बहुल सऊदी अरब के आंतरिक मंत्रालय का कहना है कि मौत की सजा पाए कुछ लोग सांप्रदायिक संघर्ष भड़काने के आरोप में दोषी साबित हुए थे। यह ऐसा आरोप है जिसे अकसर सऊदी अरब शिया कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल करता है। एमनेस्टी ने कहा कि सजायाफ्ता लोगों में अब्दुलकरीम अल-हवज भी था, जिसकी उम्र गिरफ्तारी के वक्त महज 16 साल थी। एमनेस्टी ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लघंन है।
एमनेस्टी में मध्य पूर्व मामले के रिसर्चर लिन मालौफ कहते हैं, “यह पूरी कार्रवाई बताती है कि कैसे अब भी सऊदी अरब में शिया समुदाय में असंतोष को दबाने के लिए मौत की सजा का राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है।” मानवाधिकार समूह का कहना है कि जिन लोगों को सजा दी गई है उनमें से 11 पर ईरान के लिए जासूसी करने का आरोप था। वहीं 14 लोगों पर सरकार के खिलाफ साल 2011 और 2012 में हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़े होने का आरोप था।