कोबरापोस्ट की तहकीकात में यह पता चला है कि यूपीए सरकार द्वारा साल 2009 में जो बुंदेलखंड पैकेज दिया गया था वो लगभग पूरी तरह से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है।
सूखे की मार झेल रहे इस बुंदेलखंड क्षेत्र की हालत का जायजा लेने के लिए दिसंबर 2007 में यूपीए सरकार ने नेशनल रेनफेड एरिया ऑथोरिटी के सीइओ डॉ जे.एस.सामरा के नेतृत्व में इंटर मीनिस्ट्रीयल सेंट्रल टीम गठित की।
इस टीम ने उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्रों का दौरा किया।
इस टीम की रिपोर्ट के आधार पर उस समय की केंद्रीय कैबिनेट ने नवंबर 19, 2009 को बुंदेलखंड क्षेत्र को 7 हजार 2सौ 66 करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा किया।
इस पैकेज के तहत उत्तरप्रदेश के 7 जिलों जिनमें बांदा, चित्रकुट, हमिरपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर और महोबा को 3 हजार 5 सौ 6 करोड़ की राशि दी गई और मध्यप्रदेश के 6 जिलों जिनमें छत्तरपुर, दमोह, दतिया, पन्ना, सागर, और टिकमगढ़ को 3 हजार 7 सौ 60 करोड़ रूपए की राशि बुंदेलकंड पैकेज के तहत केंद्र सरकार के द्वारा दी गई|
बुंदेलखंड पैकेज के तहत दी गई इस 7 हजार 2सौ 66 करोड़ रूपए की राशि का उपयोग साल 2009 – 2010 से तीन साल के भीतर किया जाना था।
19 मई 2011 को उस समय के केंद्रिय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन आदित्य और दूसरे सांसदों के कहने पर 200 करोड़ की केंद्रिय सहायता और इस बुंदेलखंड पैकेज के तहत बढ़ा दी गई।
इसमें उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के हिस्से में 100-100 करोड़ रूपए आए|
करीब साढ़े सात हजार करोड़ रूपए के इस बुंदेलखंड पैकेज के तहत यहां की जनता के लिए बेहतर रिवर सिस्टम , कृषि विकास, पशुपालन और डेयरी विकास, नए बांधों का निर्माण , नए नहरों का निर्माण, करीब 40 हजार नए कुएं का निर्माण, 30 हजार तालाबों का निर्माण, 11 लाख हेक्टेयर जमीन पर वाटरशेड डेवलपमेंट , 2 लाख 60 हजार हेक्टेयर जमीन पर फारेस्ट एरिया का विकास, इसके अलावा वर्षाजल संरक्षण और जैव ईंधन के विकास जैसे कार्य होने थे।
कोबरापोस्ट को इस छानबीन में पता चला कि:-
- बुंदेलखंड पैकेज से बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों का सही मायने में कोई फायदा नहीं हुआ है।
- अधिकारी और ठेकेदार मिलकर सारे पैकेज को हजम कर गए।
- 440 करोड़ की लागत से इस क्षेत्र में नदियों के ऊपर बांध बनने थे। लेकिन जो बांध बने वो पहली बरसात में ही बह गए। पहली बरसात में बांध के बहने के कारण किसानों के खेत भी पानी के तेज बहाब में बह गए और उनकी फसल बर्बाद हो गयी।
- बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत होने वाले कामों में कई ग्रामीणों की मजदूरी भी ठेकेदारों ने नहीं दी।
- पान की खेती के लिए हर किसान को 30 हजार की सहायता राशि मिलने वाली थी लेकिन अधिकारियों ने पैसे के बदले घटिया किस्म के उपकरण किसानों को बांट दिया। इन किसानों से अधिकारियों ने 6 – 6 हजार रूपए भी अंशदान के रूप में वसूले।
- इसी तरह पैकेज के तहत मिलने वाली बकरियों के लिए भी ग्रामीणों से अधिकारियों ने 9 -9 हजार रूपए वसूले।• बुंदेलखंड पैकेज के तहत ग्रामीणों को 10 बकरियां और एक बकरा मिला था। लेकिन ये बकरियाँ ग्रामीणों को बीमार हालत में मिली जो मिलने के कुछ दिन बाद ही मर गई। इन बकरियों में फैले वायरस के कारण ग्रामीणों की अपनी बकरियां भी मर गई। सरकार ने इन बकरियों का बीमा भी करवा रखा था लेकिन बुंदेलखंड वासियों को इस बीमे से भी कोई फायदा नहीं हुआ।
- बुंदेलखंड वासियों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए सरकार ने पैकेज के तहत डेयरी प्लांट का निर्माण कराया था। लेकिन आज तक इस डेयरी प्लांट मे ताला ही लटका है।
- पैकेज के तहत ही बुंदेलखंड वासियों के लिए अच्छी सड़को का भी निर्माण होना था। लेकिन ठेकेदार और अधिकारी मिल कर इसके पैसे भी डकार गए। जिस सड़क का निर्माण हुआ वो पहली बरसात में ही बह गयी।
- गरीबों को घर बनाने के लिए प्लॉट देने का प्रावधान भी पुनर्वास योजना के तहत इस पैकेज में था। लेकिन जो प्लॉट ग्रामीणों को मिले वो प्लॉट ना होकर गंदे पानी से भरे गहरे गड्ढे मिले।
सरकार ने यह पैकेज बुंदेलखंड वासियों की समस्या दुर करने के लिए दिया था। लेकिन इस पैकेज ने ग्रामीणों की समस्या को घटाने के बजाय और बढ़ाने का काम ही किया है।
बुंदेलखंड पैकेज के तहत दी गई लगभग साढ़े सात सौ करोड़ रूपए की राशि का इस्तेमाल क्या वाकई बुंदेलखंड की जनता के लिए किया गया।
क्या वाकई बुंदेलखंड पैकेज की मदद से बुंदेलखंड वासियों की दशा और दिशा बदल गई।
बुंदेलखंड पैकेज को लेकर जो एक कडवा सच आया वो ये है कि इस क्षेत्र की गरीब अनपढ़ और भोली भाली जनता को छला गया।
ठेकेदार, अफसर और खादीधारी करीब साढ़े सात सौ करोड़ रूपए के बुंदेलखंड पैकेज को बिना डकार लिए हजम कर गए।
यह है बुंदेलखंड का सच |