देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से 17 दिनों से लापता छात्र नजीब अहमद का अबतक कोई सुराग नहीं मिल पाया है न ही ऐसा कुछ आसार दिख रहा है। दिल्ली पुलिस का काम भी इतना ‘काबिले तारीफ’ है कि खुद पुलिस ने खुद को निकम्मी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
लेकिन आज भोपाल सेंट्रल जेल से आठ विचाराधीन कैदी “भागे”- वो “आतंकवादी” घोषित कर दिए गए जबकि अभी देश की किसी अदालत ने उन पर कोई आरोप तय नहीं किया था।

गौर करने वाली बात तो ये है कि पूरे सेंट्रल जेल में उन्हें सिर्फ एक ही गार्ड नजर आया, जिसकी उन्होंने हत्या कर दी। आठों अलग-अलग “भागने” की बजाय एक ही साथ एक ही दिशा में “भाग” रहे थे। पुलिस ने आठों को “मुठभेड़” में मार गिराया। कमाल की बात है कि पूरे भोपाल सेंट्रल जेल से सिर्फ आठ कैदी “भागे”…..और सब के सब ‘मुसलमान’ थे। हिन्दू कैदियों ने भागने से मना कर दिया होगा, है न?
पर क्या ये बात चौकाने वाली नहीं है कि एक सेंट्रल जेल से जहाँ पुलिस कि इतनी चौकसी होती है वहां 8 कैदी बेडशीट के सहारे कैसे भाग सकते हैं? दूसरी बात जो मुझे पर्सनली सुनकर अटपटा लगा है कि एक कांस्टेबल को बर्तन से गला काटकर कैसे मारा जा सकता है?
तीसरी बात, पूरी रात थी उनके पास भागने के लिए फिर वो पास के गावँ में ही जाकर क्यों छिपे जबकि ये जानते हुए भी कि उनके फरार होने के बाद पुलिस उनकी खोजबीन में जूट गयी होगी। चौथी पर आखिरी नहीं, फरार होने से लेकर एनकाउंटर होने तक कि इस छोटी अवधी में उनके पास हथियार कहाँ से आया जिससे उन्होंने पुलिस पर फायर किया?
खुद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने NDTV से बात करते हुए कहा कि उनके पास हथियार थे। तो सवाल ये उठता है कि हथियार आया कहाँ से, जेल में उन्हें हथियार किसने दिया?
सोशल नेटवर्क पर ज़ारी फोटे देखने से पता चलता है “आतंकियों” का हुलिया जेल से भागने के बाद इतने अच्हे तरह से कैसे तैयार हो सकते हैं, आप खुद ही उनके जीन्स, स्पोर्ट्स शूज, हाथ में घडी, साफ़ टशर्टस पर गौर कर सकते हैं और खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं।
मैं जोर देकर कहा नहीं कर रहा हूँ कि यह एक “फर्जी मुठभेड़” है, लेकिन ये काफी प्रासंगिक सवाल है जो हर पत्रकार को एनकाउंटर में मारे जाने वाले सिमी सदस्य के बारे में अपनी स्टोरी फाइल करने से पहले पूछना चाहिए था।
ये भी संयोग है कि घटना ऐसे समय में हुई है जब भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव चरम पर है। हर रोज कोई न कोई जवान शहीद हो रहा है। सिनेमा हॉलों में फिल्म की शुरुआत से पहले मुसलमानों और ईसाइयों को नसीहत दी जा रही है कि उन्हें भी ‘देशभक्त’ बनना चाहिए। संयोग ये भी है कि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव होने को हैं। जातियों के आधार पर वोट बंटने से एक पार्टी को हार का डर सताता रहता है। इसलिए ‘राष्ट्रवाद’ की भावना जगाकर देश की सुरक्षा और सेना के नाम पर वोट बटोरने की कोशिश है। इस पूरी ‘कहानी’ में कहीं न कहीं ‘झोल’ है।
Tumhara lekh padhne se pahle pata rahta hai ki Tum kya likhoge
Sharam karle kya muslman hindu kar rha hai ….jail se to bhaage h na to mar gye isme hindu muslman kya krega ….