इरशाद अली
शकूर बस्ती इलाके में झुग्गियां खाली कराने के अभियान में रेलवे ने जिस बहादुरी का परिचय दिया है उसमें एक मासूम बच्चे की मौत का पुरस्कार लेने से अब रेलवे अपना पल्ला झाड़ रहा है।
बीती रात जिस बहादूरी और प्लानिंग से रेलवे के अधिकारियों ने निर्ममता और कु्ररता से भरे अपने इस अभियान में ग़रीब झुग्गी वालों को शकूरबस्ती इलाके से खदड़ेना शुरू किया तब उनको इस बात का जरा भी ख्याल नहीं था कि ये गरीब इतनी ठंडी रात में असहाय होकर कहां जाएगें।
चूंकि रेलवे के अधिकारियों को अपनी फाइलों में अपने इस बहादूरी अभियान को दर्ज करना था इसके लिये मानवीयता जैसी कोई भावना उनके लिये मायने नहीं रखती थी। इसलिये बीती आधी रात उन्होंने इस कायरतापूर्ण कारवाई को अंजाम दिया। पूरे मामले पर रेलवे के डीआरएम इतने मासूम बने हुए है कि जैसे कोई अमावनवीय घटना हुई ही नहीं है।
अपनी बेतूकी सफाई में उन्होंने कहा कि बच्ची की मौत 10 बजे के आसपास हुई है जबकि कारवाई हमने दोपहर 12 की शुरू की थी।
जबकि इस पूरे मामले में रेल मंत्री सुरेश प्रभू अनभिज्ञ नज़र आए। उनके संज्ञान में ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं थी। दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपनी तुरन्त प्रतिक्रिया इस पर दिखाई और एक्शन लेते हुए 2 एसडीएम को निलंबित करने की घोषणा कर बेघर हुए लोगों के लिये तुरन्त राहत का इंतजाम किया।
यही नहीं, अच्छा लगा कि केजरीवाल जनता के मुख्यमंत्री का परिचय देते हुए रात के डेढ़ बजे उस ठिठुरती सर्दी में भी झुग्गियों से बेदखल हुए लोगों से मिलने शकुरबस्ती पहुंचे। कुछ लोग इसे राजनीति कहें लेकिन ये एक खूबसूरत राजनीति थी जहाँ जनता का नुमाइन्दा समय और मौसम की परवाह किये बग़ैर पीड़ित के साथ खड़ा होने के साथ साथ उनकी मदद करता नज़र आया ।
लेकिन इस प्रशन का जवाब अब भी आना बाक़ी है कि बीती रात सर्वाधिक ठंड दिल्ली में देखी गई तब ऐसे में रेलवे को अपने इस दमनकारी प्लान को एक्टिव करने की क्या जरूरत आन पड़ी थी, वे दिन में भी इस तरह की कारवाई को अंजाम दे सकते थे। सर्दी के ख़त्म होने का भी इंतज़ार कर सकते थे । ऐसा नहीं है की दिल्ली में कोर्ट के आदेश के बावजूद भी अब तक कई अनाधकृत कालोनियां अब भी खड़ी हुई नहीं है । हम ने देखा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी मुंबई में कोई कैम्पा कोला सोसाइटी में रहने वालों का कुछ नहीं बिगाड़ सका ।
बात साफ़ है, इस देश में अमीरों केलिए क़ानून का पैमाना कुछ और है और झुग्गी झोपडी में रहने वाले ग़रीबों केलिए कुछ और। ये वह सच है जिस पर हर भारतीय को शर्मसार होना चाहिए।
लेकिन जैसा कि रेलवे के अन्य अधिकारियों का कहना है कि वे जब भी इस बस्ती को खाली कराने के लिये कारवाई करते थे तब उन पर पत्थर फैंके जाते थे। तो अब लगता है इसी के चलते बदले की भावना से रेलवे के अधिकारियों र्ने इंट का जवाब पत्थर से दिया है। उजाड़ी गई इन लभगभग 500 से 700 झुग्गियों में कितने गरीब परिवार रहते होगें रेलवे को क्या एक बार भी वहां रहने वाले बुढ़े और बच्चों का ख्याल नहीं आया होगा। अब जबकि इस पूरे मामले में एक मासूम की जान चली गयी है तब उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर मुकादमा चलाया जाए जिससे आगे इस तरह की अमानवीय कारवाई की जाने से पहले इन अधिकारीयों को दस बार सोचने पर मजबूर होना पड़े ।