इरशाद अली
एक ऐसे मुख्यमंत्री की छवि जिसने भष्ट्राचार की बुराई के खात्मे की खातिर अपना जीवन दांव पर लगा दिया अब अब एक ऐसा बड़ा वर्ग है जिन्होंने उनपर सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया है और लोग इसके लिये स्वयं अरविंद केजरीवाल को इसका जिम्मेदार मान रहे है।
जन लोकपाल पर भले ही घमासान मचा हों और नेता एक दुसरे पर छींटाकशी करने पर आमदाह हों, लेकिन यहाँ मैं जिन मुद्दों की बात करने जा रहा हूँ वह बहुत ही ज़मीनी स्तर से जुडी हुई समस्याऍ हैं|
सब जानते है अरविंद केजरीवाल जमीन के नेता है और अपनी जड़ों को उन्होंने हमेशा ज़मीन से जोड़े रखा, इसी वजह से ज़मीन के लोग उनसे जुड़ गए और ऐसे जुड़े कि इतिहास बन गया। इस इतिहास को बनाने में अरविंद केजरीवाल के आंदोलनों की अहम भूमिका थी। ये आंदोलन जो उन्होने ज़मीन के लोगों को साथ में लेकर चलाए थे।
इन्ही एक वर्ग में बड़ी भीड़ थी आॅटो वालो की। आॅटो वालों ने दिखा दिया था कि वे सड़क दौड़ाते हुए अपने आॅटो के साथ कोई मामूली आदमी नहीं है। अरविंद केजरीवाल के स्वर्णमयी विजय में बहुत बड़ी भूमिका इन आॅटो वालों की थी। अब इनका कहना है कि अरविंद केजरीवाल साहब ने इन्हें आज ना सिर्फ नज़रअंदाज कर दिया है बल्कि भूल भी चुके है।
और इस काम को महत्वपूर्ण सही तरीके से अंजाम दिया है दिल्ली में परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी उठाने वाले आदरणीय गोपाल राय जी ने। आज आॅटोवालों के बीच अरविंद केजरीवाल की प्रतिष्ठा तेजी से धुमिल हो रही है और उनको मालूम भी नहीं है कि जमीन पर खेल बदलना भी शुरू हो चुका है। ये वहीं आटोवाले है जो हर सवारी से बार बार दोहराते थे कि एक हमें एक ईमानदार नेता की सख्त जरूरत है और अरविंद केजरीवाल उसका आज की राजनीति में सबसे मजबूत विकल्प है।
अब इसे गोपाल राय जी की मेहरबानी कह लीजिये के ऑटो वालों के गुस्से का निशाना केजरीवाल साहब को बनना पद रहा है । आप पूर्वी दिल्ली के किसी भी चौराहे से आॅटो लेकर सफर किजिये और अरविंद केजरीवाल के बारें में उनकी राय जानिये तब आपको रंग-बिरंगी गालियों की बोछार सुनने को मिलेगी।
10 में से 9 आटोवाले अरविंद केजरीवाल साहब को इस सम्मान से नवाजते मिलेगें। जब मैंने ये जानने कि कोशिश कि आखिर उनको इतना गुस्सा क्यों है तब हमें पता चला कि पूर्वी दिल्ली के बहुत सारें इलाके जैसे खजूरी से शास्त्रीपार्क जहां लगभग 1200 आॅटो डेली इधर से उधर चक्कर मारते हुए सवारियों को छोड़ने का काम करते है।
भजरपुरा से बस अड्डा, सीलमपुर, वेलकम, शाहदरा, सोनिया विहार, पुस्ता, कान्तिनगर जैसे सैकड़ो रोड है पूर्वी दिल्ली के जिन पर ये आॅटो वाले चलते है। लेकिन ऑटो वालों का इलज़ाम है कि इनको चलने के लिये भारी अदायगी पुलिस वालों को करनी पड़ती है। छोटे रोड पर 900 से 1200 रूपये उस इलाके के थाने को देने पड़ते है जिस रोड पर 8 से 10 चौराहे पड़ जाए वहां 1500 से 2500 रूपये महिना देना होता है। क्योंकि इन पुलिस चैकियों को बिना दिए आप अपना आॅटो वहां से निकाल ही नहीं सकते।
हर थाने और रोड का अपना एक सिस्टम होता है पहचान का। दिए गए पैसे के बदले पुलिस चौकी उस आॅटो वाले को एक स्टीकर देती है जिसे वो आगे चिपकाता है फिर उसके बाद कोई पुलिस वाला आॅटो को नहीं रोकता महिना वसूली के लिये। हर महिने एक नया स्टीकर इशू होता है जो आॅटो वालों को दिया जाता है और हर इलाके का अपना अलग स्टीकर होता है। इन पैसों की अदायगी पुलिस चौकी की तरफ से तैनात कोई बंदा करता है जैसे खजूरी चौक पर आपको एक मोटे अंकल खड़े मिलेगें जो हर आने जाने वाले आॅटो का नम्बर अपनी डायरी में दर्ज करते है और स्टीकर बांटते है। पुस्ता पर एक आंटी मिलेगी।
हर जगह कोई ना मिलेगा इस वसूली को करता हुआ दिख जाएगा। अगर एक रोड पर अमूमन 1200 आॅटो चलते है और 1500 रूपये देते है महिना का तो उस जगह की चौकी को पहुंचता है 1200 x 1500 = 18,00,000 रुपये की वसूली ये सिर्फ एक रोड की वसूली है पूरी पूर्वी दिल्ली से करोड़ों रूपया महिना सिर्फ इन गरीब आॅटोवालों से वसूला जाता है।
जब उनसे बात करते है कि अरविंद जी ने इस पर लगाम नहीं लगाई तब वे बताते है शुरू के दो से तीन महिने तो सब ठीक रहा खूब धरपकड़ भी हुई लेकिन बाद में सब वैसा ही होता चला गया जैसा पहले था। यहां वे सब सीधे-सीधे आरोप दिल्ली परिवहन मंत्रालय के गोपाल राय पर लगाते है।
अधिकांशत आॅटोवाले सभी नियम पूरा नहीं कर पाते जैसे अधिक सवारी बिठा लेना। अब 5 रूपये वो लेते है शास्त्री पार्क से खजूरी तक के लिये अगर तीन सवारी को लेकर वो इतना लम्बा रोड पार करेगा तो कैसे औसत आएगा इसलिये वो 6 से 8 सवारियां बिठा लेते है बस इसी बात का पुलिस वाले फायदा उठाकर महिना बांध लेते है।
कुछ आॅटोवालों के पास लांइसेंस की समस्या या कागजों का पूरा ना होना होता है, इस पर वो बताते है कि लांइसेंस के लिये पन्द्रह हजार से पच्चीस हजार रिश्वत दो तब ये काम हो। गरीब आदमी कैसे इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करें। बहरहाल इन आॅटोवालों की समस्याएं तो बहुत है लेकिन इन लोगों के कंधों पर चढ़कर जो अरविंद केजरीवाल आज दिल्ली के मुख्यमंत्री बने है पूरी तरह से भूल चुके है और अगर नहीं भूले है तो अपने किसी आदमी को भेजकर जरा आॅटो में इन सभी सड़को पर सैर करवा दिजिए आपको इनकी समस्याओं की शिद्दत का अंदाजा लग जायेगा।